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इस लेख में आप जानेंगे :

🌑 तंत्र साधना में माँ काली के पवित्र अनुष्ठान​​

🕯️ उनकी प्रारंभिक उपासना और शव साधना कैसे करें

🔥 उनके तांत्रिक यज्ञ और अन्य उपाचार

📿 उनकी ऊर्जा से जुड़ने हेतु सबसे शुभ दिन और समय

🐍 माँ काली से प्रतीकात्मक रूप से जुड़े पशु

🪐 उनकी उपासना से संबंधित ग्रह और उन ग्रहों का उस पर प्रभाव


तंत्र साधना — जगन्माता की आराधना हेतु पारम्परिक आध्यात्मिक अनुशासन — में दशमहाविद्याओं में प्रथम माँ काली हैं।
काल का अर्थ है अंधकार और समय, तथा माँ काली हमारी समस्त अंधकार को अपनी अनन्तता में समेट लेती हैं।
वे हमारे कर्मों को अपने आभूषण के रूप में धारण करती हैं, और वे समय से परे हैं।
‘तंत्र साधना’ ऐप वेदों से सीधे प्राप्त मार्गदर्शन प्रदान करता है, जिससे दशमहाविद्याओं की साधना की विधि अनुसरण की जा सके।

'तंत्र साधना' ऐप के लोडिंग स्क्रीन का स्क्रीनशॉट, जिसमें ऐप का लोगो तथा उसके पवित्र परिवेश प्रदर्शित हैं।
स्रोत : ‘तंत्र साधना’ ऐप

यह लेख तंत्र साधना में माँ काली की उपासना हेतु उपयोग किए जाने वाले अनुष्ठानों, पवित्र अर्पणों, आहार, पशुओं और जड़ी-बूटियों का विस्तारपूर्वक विवरण देता है।

यह उनकी उपासना हेतु सबसे शुभ दिन और समय, तथा साथ ही उन ग्रहों की चर्चा भी करता है जो उनकी ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

‘तंत्र साधना’ ऐप पर माँ काली की उपासना हेतु अनुष्ठान

११-दिवसीय तैयारी

दीक्षा और जप

माँ काली की उपासना आरंभ करने हेतु ‘तंत्र साधना’ ऐप में एक अद्वितीय, मनोरम थ्री-डी अनुभव प्रस्तुत किया गया है, जो श्मशान में स्थित है — वह पवित्र स्थल जहाँ माँ वास करती हैं।
इस यात्रा का नेतृत्व गुरुदेव वेदव्यास करते हैं, जो साधक को आशीर्वाद देते हैं और इस पवित्र मार्ग पर चलने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
उनके निर्देशन में साधक को भक्ति सम्बन्धी पहेलियाँ हल करने के लिए कहा जाता है, जिससे साधक को माँ के मंत्र में दीक्षा प्राप्त करने की आध्यात्मिक क्षमता प्राप्त होती है।
इसके पश्चात मंत्र दीक्षा प्रदान की जाती है, जिसके बाद साधक ११-दिवसीय समर्पित तैयारी आरंभ करता है, जिसमें उसे हिमालय के सिद्ध ओम स्वामी के स्वर में जागृत तांत्रिक मंत्र से माँ काली का आवाहन करना होता है।

पवित्र यज्ञ

११-दिवसीय तैयारी के प्रत्येक दिन में सम्मिलित होता है :

  • तांत्रिक मंत्र का १०८ बार जप करना
  • तांत्रिक यज्ञ पूर्ण करना

इस यज्ञ हेतु साधक को अनुष्ठान में प्रयुक्त सामग्री की १२ विशिष्ट गठरियों को एकत्रित करना होता है। ये गठरियाँ श्मशान में बिखरी होती हैं, जिससे साधक को स्थान में घूमने हेतु प्रेरित किया जाता है, जिससे श्मशान तथा विस्तार में माँ काली के साथ उसका संबंध गहरा होता है।
इस दैनिक संपर्क से साधक में भक्ति का निर्माण होता है और साधक तथा देवी के बीच अंतरंग सम्बन्ध पनपता है।

माँ काली के साथ सम्बन्ध का निर्माण

इस यात्रा के समय ओम स्वामी द्वारा ककारादि काली सहस्रनाम स्तोत्र का निरन्तर जप चलता है। यह साधक के चित्त को उच्च स्तर पर ले जाता है और यज्ञ हेतु भक्ति से तैयार करता है।

क्योंकि तंत्र का मार्ग भक्ति के बिना नहीं चला जा सकता।
मंत्र जाप और श्मशान में यज्ञ के अतिरिक्त, साधक चिह्न एकत्रित करता है, जो माँ काली की उत्पत्ति की कथाएँ और उनका रहस्यमय ज्ञान प्रस्तुत करते हैं। इस मार्ग पर चलकर, माँ की कथाओं और पवित्र ज्ञान में मन को डुबोकर, साधक को उनकी सर्वव्यापकता की स्मृति होती है।
समय के साथ साधक उनकी अनोखी उपस्थिति अनुभव करने लगता है और जान पाता है कि माँ काली उनके जीवन में विशेष रूप से क्या अर्थ रखती हैं।

माँ के एक नाम का उल्लेख श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में है — अभ्यासातिशयज्ञाता, अर्थात् वे जो निरन्तर भक्ति द्वारा जानी जाती हैं। जप और श्लोक साधक को पूरे दिन उनके भाव में बने रहने और उनसे निकटता बढ़ाने में सहायता करते हैं।
साधक के साथ एक विशेष प्रशिक्षित श्वान भी होता है — अत्यन्त बुद्धिमान और महाविद्या के प्रति गहरी भक्ति वाला। साधक को इस पवित्र साथी को प्रतिदिन न्यूनतम एक बार भोजन देना होता है।

शव साधना

११-दिवसीय अनुशासित तैयारी के पश्चात, साधक उस स्थान पर पहुँचता है जहाँ गुप्त शव साधना की जाती है।
यह एक पवित्र २१-दिवसीय अभ्यास का मार्ग खोलता है, जिसे केवल वे लोग करते हैं, जिन्हें तैयार माना गया है। माँ काली के निरीक्षण में साधक शव का आवाहन करता है।
अनुष्ठान शव पर बैठकर किया जाता है, जो सामाजिक विश्वास, धार्मिक संस्कार और व्यक्तिगत आसक्तियों को तोड़ने हेतु एक शक्तिशाली कृत्य है।

लक्ष्य मृत्यु या भय नहीं, बल्कि पारलौकिक दृष्टि है — प्रत्येक वस्तु में माँ को देखना, जिसमें संसार जिसे निर्जीव कहता है, वह भी सम्मिलित है।
श्मशान में शव के ऊपर बैठकर साधक अंतिम सत्य का सामना करता है : कि सभी वस्तुएँ — शरीर, संबंध, कीर्ति और पहचान — अस्थायी हैं।
इस सामने में मृत्यु का भय धीरे-धीरे विलीन होने लगता है। गहरा वैराग्य उत्पन्न होता है। श्मशान सत्य का दर्पण बन जाता है — वह स्थान जहाँ जन्म लेने वाले सभी को एक दिन लौटना होता है।
ऐसे स्थान में भ्रम से मुक्त होकर मन शांत होता है। बाह्य अराजकता मिटती है और आन्तरिक मौन जड़ पकड़ता है — वह मौन जहाँ माँ बोलती हैं।

माँ के लिए अर्पण

माँ को क्या अर्पित करें?

श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में, माँ को सव्यपाशव्य मार्गस्थ के रूप में वर्णित किया गया है, अर्थात् वे जो दाएँ और बाएँ हाथ के मार्ग, दोनों की देवी हैं।
वे कौलिनी-केवला हैं — कौलियों द्वारा पूजित, वामकेश्वरी — वामाचारियों द्वारा पूजित, और समयाचार-तत्पर — समयाचार के मार्ग की ओर समर्पित।
वे सभी तांत्रिक मार्गों की माता हैं।
पाठ में उन्हें पंचयज्ञप्रिय भी कहा गया है — पाँच यज्ञों की प्रिय। वे यज्ञप्रिया (यज्ञ की प्रेमी), यज्ञकर्त्री (यज्ञ करने वाली), और यजमान स्वरूपिणी (यज्ञकर्ता का सार) भी हैं।

परन्तु वे केवल बाह्य अनुष्ठानों से संतुष्ट नहीं होतीं। जैसा कि उनके नाम से स्पष्ट है — अंतरमुख-समाराध्य, बाह्यमुख सुदुर्लभ — उन्हें आंतरिक रूप से पूजा जाता है और केवल बाह्य साधनों से उनकी उपासना करना कठिन है।
यहीं ‘तंत्र साधना’ ऐप एक डिजिटल मंदिर बन जाती है — साधकों को माँ महाकाली की आंतरिक पूजा का शुद्धतम सार प्रदान करने हेतु।

‘तंत्र साधना’ ऐप में जागृत तांत्रिक यज्ञ में अर्पण

जागृत तांत्रिक यज्ञ में प्रत्येक सामग्री गहन, गूढ़ अर्थ रखती है।
माँ के प्रत्येक पवित्र नाम के साथ साधक अर्पित सामग्रियों को अग्नि में समर्पित करता है — पूर्ण समर्पण में। प्रत्येक अर्पण आंतरिक और बाह्य परिवर्तन का प्रतीक बन जाता है।

अग्नि के पोषक

पवित्र अग्नि को सबसे पहले जीवन और शुद्धता की अभिव्यक्ति करने वाले अर्पणों से पोषित किया जाता है :

  • घी और हवन सामग्री — सुगंधित जड़ी-बूटियों, मूलों और पत्तियों का पवित्र मिश्रण — अग्नि को जीवित रखते हैं, वातावरण को शुद्ध करते हैं और साधक के दिव्य संबंध को सुदृढ़ करते हैं।
  • अक्षत (अखंडित चावल) और उड़द दाल समृद्धि, पोषण और वैभव के प्रतीक के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
  • भैंस का घी और तिल का तेल भी अर्पित किया जा सकता है — विशेषतः उग्र अथवा गंभीर रूपों की पूजा में।

माँ और भगवान शिव को अर्पित पवित्र अर्पण

ये अर्पण माँ काली और उनके पति, भगवान शिव, को विशेषतः प्रिय हैं :

  • बिल्व फल और पत्र सनातन धर्म में अत्यंत शुभ माने जाते हैं। त्रिपत्रक पर्ण ३ गुणोंसत्त्व, रजस और तमस — का प्रतिनिधित्व करता है और इसे अर्पित करना इनसे परे जाकर ईश्वर में विलीन होने का प्रतीक है।

परिवर्तन के अर्पण

  • काली मिर्च साधक की ऊर्जा नाड़ियों को खोलने और उच्च आध्यात्मिक चेतना में प्रवेश करने हेतु अर्पित की जाती है।
  • काले तिल आध्यात्मिक अशुद्धियों को नष्ट करते हैं और सूक्ष्म शरीर को शुद्ध करते हैं।
  • काले हल्दी के पत्ते, नीले रंग के साथ, माँ काली के रहस्यमय और शक्तिशाली रूपों का प्रतीक हैं, जो उनके गहन ज्ञान और अदम्य शक्ति को दर्शाते हैं।
  • लौंग की धूप वायु को शुद्ध करती है और साधक के चारों ओर सुरक्षात्मक सूक्ष्म आभा निर्माण करती है।

प्रेम, आनंद और शुद्धता के अर्पण

ये पवित्र अर्पण भक्ति की मधुरता, समर्पण और आनंद को प्रकट करते हैं :

  • ब्राउन शुगर मधुरता, प्रेम और आध्यात्मिक मार्ग में उत्सव का प्रतीक है।
  • इलायची बीज सात्विक होते हैं और स्पष्टता, हल्कापन और सूक्ष्म आध्यात्मिक उत्थान प्रदान करते हैं।
  • माँ के प्रति प्रेम से भक्त के हृदय के समान गुड़ पिघलता है, भावनात्मक समर्पण का का प्रतीकत्व करते हुए।
  • सूखे मेवेकाजू, बादाम, खजूर, किशमिश, अंजीर और काले अंगूर सम्मिलित — भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों क्षेत्रों में जीवन-शक्ति, पोषण और वैभव का प्रतीक हैं।
  • गुलाब का अत्तर और इत्र उनके सुगंध के लिए अर्पित किए जाते हैं, जो शुद्धता और प्रेम से भरे भक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

दिव्य बल के अर्पण

ये अर्पण प्रभावशाली और आध्तात्मिक रूप से शक्तिशाली हैं, तथा इनके गहन ऊर्जात्मक अर्थ हैं :

  • धतूरा पुष्प --- भगवान् शिव को पवित्र — शुभता, आत्मसाक्षात्कार और अहंकार के समर्पण को दर्शाता है।
  • मखाना जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के अनंत चक्र और परिवर्तन के शक्तिशाली प्रतीक हैं।
  • कमल गट्टे आध्यात्मिक सुंदरता, वैभव और दिव्य स्त्री शक्ति की ऊर्जा धारण करते हैं।
  • जायफल सम्मान, आधार और आध्यात्मिक अर्पण की पवित्रता के प्रतीक के रूप में अर्पित किये जाते हैं।

फसल और पोषण के अर्पण

अन्न, जो जीवन का धारक है, भक्ति सहित अर्पित होने पर पवित्र बन जाता है :

  • गेहूँ के दाने, उबला चावल, जौ और मक्का समृद्धि और माँ की कृपा के प्रतीक हैं।
  • नारियल — दोनों, कद्दूकस किये हुए तथा पूरे — अपने शारीरिक रूप को ईश्वर को अर्पित करने के प्रतीक हैं। इनके ३ नेत्र तीनों लोकों में दिव्य दृष्टि का प्रतीक हैं।
  • दही आंतरिक शुद्धिकरण का प्रतीक है और ठंडक एवं शुद्धता प्रदान करता है।
  • मधु — पंचामृत का एक घटक — अमरता और माँ की कृपा की मधुरता का प्रतीक है।

चिकित्सा और निष्ठा के अर्पण

यह सामग्री दृढ़ता और दिव्य स्त्री-तत्त्व की पोषण-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है :

  • सुपारी जगन्माता के प्रति निष्ठा और अडिग भक्ति का प्रतीक है।
  • शतावरी, जो अपनी उपचार और स्वास्थ्यप्रद शक्ति के लिए जानी जाती है, माँ की पोषण और जीवनदायी शक्ति का वंदन करती है।

लकड़ी और पवित्र घास के अर्पण

ये अर्पण अग्नि को बनाए रखते हैं और यज्ञ को प्रकृति की शक्ति में स्थिर करते हैं :

  • पलाश, पीपल, लाल चंदन और हवन की अन्य पवित्र लकड़ियाँ अग्नि में प्राण और पवित्र ऊर्जा भरती हैं।
  • कुशा घास शुद्धिकरण और पवित्रता के लिए अर्पित की जाती है।

तत्त्वों और परिवर्तन के अर्पण

ये इच्छाओं के पार जाने और ५ तत्त्वों को अर्पित करने का प्रतिनिधित्व करती हैं :

  • मछली जल तत्त्व, प्रजनन शक्ति एवं पुनर्जन्म का प्रतीक है और स्थिरता एवं समर्पण के लिए अर्पित की जाती है।
  • मद्य और मदिरा के अर्पण आसक्ति, अतिभोग और सांसारिक इच्छाओं के त्याग का प्रतीकत्व करते हैं।
  • मादक पदार्थ — लालसा के नाश के प्रतीक — ईश्वर के चरणों में अर्पित किए जाते हैं।

रहस्य और शाश्वत आत्मा के अर्पण

ये अर्पण साधक को अस्थायित्व और आध्यात्मिक उत्कर्ष से जोड़ते हैं :

  • सियार सिँघी — सियार के शरीर पर पाई जाने वाली एक प्राकृतिक वृद्धि — कुछ तांत्रिक अनुष्ठानों में उनकी आध्यात्मिक शक्ति हेतु प्रयुक्त होती है।
  • श्मशान से सम्मानपूर्वक प्राप्त मानव हड्डियाँ शारीरिक आसक्ति से विमुक्ति और आत्मा की अमरता का प्रतीक हैं।
  • पशु हड्डियाँ तब प्रयुक्त हो सकती हैं, जब मानव अवशेष उपलब्ध न हों। वे भी शाश्वत आत्मा का प्रतीक हैं।
  • सर्प की त्वचा अहंकार, आसक्तियाँ और आसक्तियों एवं प्रवृत्तियों जैसे पुराने गुणों और वस्तुओं के परित्याग का शक्तिशाली प्रतीक है, परिवर्तन को अपनाने के लिए।

अंतिम अर्पण — पूर्णाहुति

पवित्र अनुष्ठान की समाप्ति पूर्णाहुति से होती है, जो खीर से बनाई जाती है — मधुरता, पूर्णता और पूर्ति का अंतिम अर्पण। यह कृतज्ञता एवं समापन का संकेत है, जो ईश्वर को पोषण और भक्ति लौटाने का प्रतीकत्व करता है।

अन्य अर्पण (उपचार)

पूजा के समय किये हुए अर्पण प्रेम, समर्पण और दिव्यता के अनुरूप भाव का प्रतीक हैं। ऊपर वर्णित अग्नि अर्पणों के अतिरिक्त साधक किसी भी वस्तु को अर्पित कर सकता है, जो भक्ति से उत्पन्न होती हो।

पुष्प अर्पण

पुष्प शुद्धता, आनंद और भक्ति के विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी सुगंध और ताजगी जीवन की जीवंतता का प्रतीक हैं, जो ईश्वर को अर्पित की जाती है।

  • जपा पुष्प (गुड़हल का फूल) माँ काली की मुख्य भेंट है। इसका चमकदार लाल रंग दिव्य प्रेम, परिवर्तन और उनकी उग्र स्त्री-शक्ति का प्रतीक है। कहा जाता है कि जब माँ काली राक्षसों का संहार करने हेतु प्रकट हुईं, तब रक्त बहा — और गुड़हल का फूल उस प्राचीन शक्ति का जीवित प्रतीक है।
  • करवीरा भी माँ को प्रिय पुष्प है। दोनों तांत्रिक ग्रंथों में गहराई से पूजित हैं।

तंत्रसार बंगाल के प्रतिष्ठित तांत्रिक आचार्य कृष्णानन्द आगमवागीश की प्रमुख ग्रन्थरचना है। वे श्री रामकृष्ण की परम्परा में एक आध्यात्मिक पूर्वज माने जाते हैं। उस ग्रन्थ में देवी को प्रसन्न करने के लिए १०८ या १००८ जपा पुष्पों की माला अर्पित करने की अनुशंसा की गई है।

  • गुलाब और लाल कमल जैसे अन्य लाल पुष्प भी माँ को अत्यन्त प्रिय हैं।

ककारादि काली सहस्रनाम स्तोत्र में माँ माँ इन नामों के साथ प्रशंसित हैं :

  • कमलाकरपूजिता — जो कमलों के गुच्छ से पूजित हैं
  • कमलाकररूपधृक् — जिनका रूप कमलों के गुच्छ जैसा है
  • कमलाकरमध्यस्था — जो कमलों के गुच्छ में विराजमान हैं
  • कमलाकरतोषिता — जो कमलों के अर्पण से प्रसन्न होती हैं

ये नाम उनके कमल (पद्म) से संबंध को दर्शाते हैं, जिसमें उनका स्वयं का नाम कमलजा (कमल से जन्मी) भी शामिल है। ये पुष्टि करते हैं कि भगवान नारायण या कमलाक्ष (कमल जैसे नेत्रों वाले) भी उन्हें पूजते हैं।
श्री कालिका पुराण में माँ को प्रिय अन्य पुष्पों का भी उल्लेख है, जैसे पलाश, मन्दार और अपराजिता।

पवित्र खाद्य अर्पण (नैवेद्य)

माँ खिचड़ी की सरल, स्नेहमय उष्मा से आनन्दित होती हैं। यह चावल और मूँग के दानों से बना सान्त्वनादायक भोजन सुगन्धित मसालों और भक्ति से परिपूर्ण होता है। वह घृत-अन्न से हर्षित होती हैं, जहाँ चावल स्वर्णाभ घृत के साथ प्रेमपूर्वक मिश्रित किया जाता है, तथा गुड़, तिल और नारियल की समृद्ध मधुरता में भी प्रसन्न होती हैं। यहाँ तक कि यह अत्यन्त सरल नैवेद्य — गुड़, बताशा और खोई — भी जब प्रेमपूर्वक उनके सम्मुख अर्पित किया जाता है, तब पवित्र बन जाता हैं।

वे क्षीर (खीर) की स्निग्ध मधुरता का आस्वादन करती हैं, और मधु-प्रीता रूप में शुद्ध मधु के स्वर्णिम स्वाद से अत्यन्त प्रसन्न होती हैं।

रामप्रसाद सेन के गीतों में हमें यह दृष्टिगोचर होता है कि समर्पण और आनन्द से अर्पित पके केले भी किसी विस्तृत अनुष्ठान के समान माँ को अपार आनन्द प्रदान करते थे।

बिल्व (बेल) पत्र, जो उनके पति भगवान् शिव को अत्यन्त प्रिय हैं, माँ को भी परम प्रिय है। वे शुद्धता, समर्पण तथा पवित्र त्रिमूर्ति का प्रतीक हैं।

‘बलि-प्रिया’ का वास्तविक अर्थ

काली सहस्रनाम स्तोत्र में माँ का एक नाम बलि-प्रिया है, अर्थात वे जिन्हें अर्पण अथवा बलिदान प्रिय हैं। यह नाम प्रायः गलत समझा जाता है।

इसका यह अर्थ नहीं कि माँ मानव या पशु का बलिदान चाहती हैं।
सच्चे तांत्रिक अर्थ में वे आंतरिक अर्पण चाहती हैं — नव-रिपु, नौ आंतरिक शत्रुओं का समर्पण :

  • काम
  • क्रोध
  • लोभ
  • मोह
  • मद
  • मात्सर्य
  • और अन्य जो हमारी दिव्यता को ढकते हैं

बंगाल के तांत्रिक उपदेशकों और संतों के शब्दों में वास्तविक यज्ञ अहंकार का परिवर्तन है — सत्य की ओर लौटने का उग्र किन्तु प्रेमपूर्ण कार्य।
यह तारापीठ जैसे स्थलों पर की गई विधियों को भी स्पष्ट करता है, जहाँ सच्चे संत (जैसे बमखेपा) सिखाते हैं कि माँ रक्त नहीं, बल्कि भक्ति चाहती हैं — अपने बच्चों से हार्दिक प्रेम।

दीप और गंध

माँ को तेल के दीपों की झिलमिलाहट प्रिय है, विशेषकर जिनमें हैं:

  • तिल का तेल
  • सरसों का तेल
  • और घृत (घी) — बंगाल की पूजा में सामान्य और श्री कलिका पुराण में प्रशंसित अर्पण।

उनका एक पवित्र नाम रक्तचंदन-सिक्तांगी है — वे जिनका शरीर लाल चंदन से अभिषिक्त है। यह उनके पवित्र सुगंध और अनुष्ठानिक शुद्धता के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
वे इनसे आनंदित होती हैं :

  • धूप
  • कर्पूर
  • और गंध — जिनमें से समस्त पारंपरिक तांत्रिक अर्पण हैं, जो दैवी उपस्थिति और इन्द्रियात्मक सम्मान को जागृत करते हैं।

रचनात्मक अर्पण (कलात्मिक अर्पण)

माँ काली केवल समय की संहारिणी नहीं, बल्कि कला की देवी भी हैं।
ककारादि काली सहस्रनाम स्तोत्र में उनका निम्न रूपों में प्रेमपूर्वक आवाहन किया जाता है :

  • कला — कला का सार
  • कलावती — रचनात्मक अभिव्यक्ति का मूर्त स्वरूप
  • कलापूज्या — कला के माध्यम से पूजित
  • कलात्मिका — सभी कलात्मक अभिव्यक्तियों की आत्मा

कविता, संगीत, नृत्य, चित्रकला और कथाकथन — समर्पण के साथ अर्पित किए जाने पर — पवित्र उपचार बन जाते हैं, जो माँ को अत्यंत प्रसन्न करते हैं। ये रचनात्मक कर्म भौतिक अर्पणों से परे जाते हैं, भक्ति की आत्मिक स्तर की अभिव्यक्ति प्रस्तुत करते हुए।

संगीत : भक्ति की ध्वनि

१८वीं सदी के बंगाल में जन्मे श्याम संगीत का भक्तिगीत प्रकार माँ काली को अर्पित सबसे शुद्ध रचनात्मक अर्पणों में से एक है।
रामप्रसाद सेन और कमलाकांत भट्टाचार्य जैसे कवि-संतों द्वारा रचित ये गीत गहन समर्पण, अभिलाषा और सदैव रक्षा करने वाली जगन्माता के प्रति अंतरंग प्रेम व्यक्त करते हैं।
प्रत्येक छंद में वे माँ का गीतप्रिया (जिन्हें गीत प्रिय हैं) और वाद्यारत (संगीत में रमण करने वाली) के रूप में आवाहन करते हैं।

नृत्य : गति के रूप में उपासना

काली पूजा और नवरात्रि जैसे उत्सवों में पवित्र नृत्य माँ की उग्र, लयबद्ध उपस्थिति का माध्यम बन जाता है। उसके रूपों में शामिल हैं :

  • कालिका वेशालु (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) : तलवारबाजी और ऊर्जावान चरणों के साथ यह योद्धा लोक-नृत्य माँ की उग्रता का सम्मान करता है।
  • मुदियेट्टु (केरल) : राक्षस दरिका के साथ माँ के ब्रह्मांडीय युद्ध को दर्शाने वाला नाटकीय धार्मिक नृत्य — भक्ति को अभिनय के साथ मिश्रित करने वाली एक पवित्र कथा-कथन परम्परा।

इन प्रकारों में माँ प्रेतानर्त्यपरायण के रूप में प्रत्यक्षहोती हैं — वे जो आत्माओं के उत्साही नृत्य में लीन हैं, शक्ति और पारलौकिकता का अनुभव कराती हुईं।

एक चित्रकला जिसमें माँ काली अपने प्रिय भक्त रामप्रसाद सेन के पीछे चल रही हैं, जब वे तन्मय होकर उनकी स्तुति गाते हुए चल रहे हैं।

माँ काली अपने प्रिय भक्त रामप्रसाद सेन के पीछे-पीछे चल रही हैं, जब वे तन्मय होकर उनकी स्तुति गा रहे हैं।

स्रोत : tumblr.com

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माँ काली पर केंद्रित लोकनृत्य

स्रोत : indianetzone.wordpress.com

चेतना का अर्पण

श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में, जगन्माता का आवाहन निम्न रूपों में किया गया है :

  • चैतन्यार्घ्य-समराध्या — जिनकी उपासना चेतना के अर्पण के साथ की जाती है
  • चैतन्य-कुसुमप्रिया — जो चेतना के पुष्प में आनंदित होती हैं

ये नाम सबसे सूक्ष्म अर्पण को प्रकट करते हैं, जिसे साधक अर्पित कर सकता है — वस्तुएँ नहीं, बल्कि शुद्ध जागरूकता। आंतरिक अवस्था ही उपासना बन जाती है।

रामप्रसाद का आंतरिक समर्पण

बंगाल में रामप्रसाद सेन --- माँ काली के सबसे प्रिय कवि-संतों में से एक — उन्हें अपनी भावनाएँ, संदेह और यहाँ तक कि अपना विद्रोह भी पूजा के रूप में अर्पित करते थे।
“इस बार मैं तुझे पूर्णतः भक्ष्य कर लूंगा, माँ काली!” नामक उनकी एक रामप्रसादी में वे स्वयं और माँ के बीच की सीमा को मिटाने की धमकी देते हैं — स्वयं को काली राख से रँगकर, उनके रूप में एकत्व की खोज करते हैं।
“अब काशी जाने का क्या उपयोग?” नामक एक अन्य कविता में वे घोषित करते हैं कि सभी तीर्थ उनके चरणों में हैं। उनकी भक्ति अमिश्रित, गहन और निडर थी — पृथक्करण का ही समर्पण।

संत रामकृष्ण की जीवंत उपासना

श्री रामकृष्ण परमहंस — दाक्षिणेश्वर के महान रहस्यवादी — माँ काली को एकवचन वास्तविकता के रूप में देखते थे। भोग के समय वे भोजन के टुकड़े उनके मुख के पास रखते और उन्हें जीवित व्यक्ति की भांति खिलाते। उनके लिए माँ केवल एक मूर्ति नहीं थीं — वे जगत जननी, अर्थात ब्रह्मांड की जीवित माता थीं।

समस्त सुनने वाली

जैसा कि ‘तंत्र साधना’ ऐप में निरंतर चलता हुआ जप स्मरण कराता है, माँ हैं:

  • काकशब्द-परायणाजो कौवों की ध्वनि में लीन हैं

वे हमारी सबसे नीची, अशांत पुकार को भी सुनती हैं — हमारे आंतरिक संघर्ष की “काँव-काँव” को। वे हमारे साथ हमारे मार्ग पर चलती हैं, हमारे कर्मों को धारण करती हैं और सत्य की हर फुसफुसाहट को आराधना मानती हैं।

माँ काली की उपासना हेतु शुभ दिन और समय

मंगलवार, शनिवारऔर अमावस्या को माँ काली की उपासना के लिए सबसे प्रभावशाली समय माना जाता है, विशेषकर कृष्ण पक्ष (चंद्र मास का अंधकारमय या पतित अर्ध) की। उनकी ऊर्जा अंधकार में तीव्र होती है और साधकों को आंतरिक परिवर्तन, अहंकार के विलय और आध्यात्मिक सुरक्षा की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
मध्यरात्रि का घंटा, जिसे निशित काल कहा जाता है, विशेष रूप से शुभ है। यह लोकों के बीच का रहस्यमय संध्या काल है — एक सीमा स्थान जहाँ माँ की उपस्थिति गहन रूप से सुलभ होती है। इस समय उनके ब्रह्मांडीय नृत्य को सबसे शक्तिशाली माना जाता है, जो माया को नष्ट और कर्मभार को शुद्ध करता है।
श्री दाक्षिणेश्वर काली मंदिर जैसे बंगाल के प्रमुख मंदिर अपनी सर्वाधिक भव्य पूजाओं एवं अनुष्ठानों में इन समयों का पालन करते हैं, अपने समारोहों को चंद्रमा की पवित्र लय के अनुरूप समायोजित करते हुए।

संबंधित पशु : माँ काली के सियार

माँ काली को प्रायः सियारों के साथ चित्रित किया जाता है — कभी साथी, तो कभी उनकी परिक्रमा में हुंकार भरने वाले समूह के रूप में — और उनकी उपस्थिति गहन तांत्रिक प्रतीकत्व करती है।
सियार वन के जंगली, चतुर प्राणी हैं, जो श्मशान में निवास करते हैं — वे पवित्र स्थान जहाँ माँ काली विचरण करती हैं। ये स्थान जीवन और मृत्यु के बीच की सीमा का प्रतिनिधित्व करते हैं, और सियार माँ की सीमांत, अशांत और सीमा-भंग ऊर्जा का प्रतीक हैं।
तांत्रिक परंपरा में सियार केवल पशु नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रक्षक माने जाते हैं — पवित्र अनुष्ठानों के संरक्षक और उन साधकों के साथी, जो काली साधना के उग्र मार्ग पर चलते हैं।
उनकी हुंकार को प्रायः दिव्य संकेत, देवी की उपस्थिति का संकेत या सत्य से भटकने वालों के लिए चेतावनी मानी जाती है।

कुछ ग्रंथ और आगे बताते हैं। महाकालसंहिता (कामकला कालिखण्ड) में माँ काली को उनके भयानक वैभव में चित्रित किया गया है :


“ये सियार, जो जलते हुए कोयलों जैसे दिखते हैं, कामकला काली के चारों ओर रहते हैं और

लगातार उन्हें निहारते हैं। वह इन्हें एक पात्र से सिर खिलाती रहती हैं…”

यह केवल हिंसा का एक चित्रण नहीं, बल्कि अहंकार के नाश का प्रतीक है — अज्ञान, अशुद्धि और झूठी पहचान का प्रतीकात्मक उपभोग। सियारों को खिलाना माँ को सभी भ्रमों से मुक्त करने देना है।

'तंत्र साधना' ऐप से एक स्क्रीनशॉट, जिसमें शव साधना की भूमि की रक्षा करता हुआ एक भेड़िया दर्शित है।

स्रोत : 'तंत्र साधना' ऐप

सर्पों का प्रतीकात्मक अर्थ : माँ काली और सर्पित शक्ति

माँ काली का सर्पों से गहन प्रतीकात्मक संबंध है, जो शक्ति, सुरक्षा, परिवर्तन और मूल कुंडलिनी शक्ति — रीढ़ की हड्डी के आधार में सर्प के समान लिपटी आध्यात्मिक ऊर्जा — से जुड़े हैं।
अनेक चित्रों में माँ सर्पों से सजी होती हैं — उनके गले, बाहों और कमर में लिपटे, या उनके चरणों पर फिसलते हुए।
ये सर्प केवल आभूषण नहीं, बल्कि उनके ब्रह्मांडीय ऊर्जा पर प्रभुत्व, मृत्यु और पुनर्जन्म पर नियंत्रण और आध्यात्मिक क्षमता के जागरक के रूप में उनकी भूमिका का प्रतीक हैं।
सर्प की त्वचा का उतरना आत्मा के विनाश और नवीनीकरण यात्रा का प्रतिबिंब है, जो माँ काली के लिए उपयुक्त प्रतीक है, क्योंकि वे भ्रांतियों को उधेड़कर सत्य और मोक्ष प्रदान करती हैं।
कुछ तांत्रिक कलाकृतियों और कथाओं में उन्हें सर्पों के बिस्तर पर खड़ा या उनके फनों से मुकुटित दिखाया गया है, जो प्राचीन शक्तियों और सूक्ष्म ऊर्जा पर उनके अधिकार को दर्शाता है।
यह सर्प बिम्बविधान उनके सनातन पति, भगवान शिव, का भी स्मरण करता है, जो सर्पों से मुकुटित हैं। यह उनके अविभाज्य दिव्य एकत्व और समय व पारलौकिकता पर साझा शासन को पुष्ट करता है।

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स्रोत : rarebooksocietyofindia.org

माँ के ग्रह

माँ काली का ज्योतिषीय संबंध शनि, मंगल और छाया ग्रह राहु केतु से है — जिनमें से प्रत्येक परिवर्तन, विनाश और कर्मों की संगणना का प्रतिनिधित्व करता है।
उनकी पूजा कठिन ग्रहों के प्रभावों को कम करने के लिए मानी जाती है, जिससे भक्त आंतरिक और बाहरी विपत्तियों को पार करने हेतु ब्रह्मांडीय ऊर्जा का लाभ ले सकें।

माँ काली का दिव्य निमंत्रण

माँ काली की उपासना करना सत्य और परिवर्तन की अग्नि में चरण रखने के समान है।
भ्रम और भय के युग में वे हमें प्रत्येक छाया और स्क्रीन में मिलती हैं — अपनी उग्र करुणा आधुनिक माध्यमों से भी प्रदान करती हुईं।
‘तंत्र साधना’ ऐप के माध्यम से आप एक आभासी श्मशान में प्रवेश करते हैं — विघटन और पुनर्जन्म का पवित्र स्थान। यहाँ आपके अर्पण वास्तविक हैं। आपका समर्पण वास्तविक है। और माँ काली की उपस्थिति निर्विवाद रूप से जीवित है।
वे केवल समाप्ति की देवी नहीं हैं। वे वह महाशक्ति हैं जो समय का संचालन करती हैं — हमारे जीवन की घटनाओं को इस प्रकार संयोजित करते हुए कि वे हमारी गहनतम वासनाओं की परतों को हटाकर हमारे सच्चे स्वरूप का प्राक्याक्षीकरण करें।

वे हैं:

  • शब्दरूपा — समस्त ध्वनि का स्रोत
  • वेदमयी — पवित्र ज्ञान का मूर्त स्वरुप
  • तुष्टि, पुष्टि, मति, धृति — संतोष, पोषण, बुद्धि और सहनशीलता

फिर भी, जो उन्हें सबसे अधिक प्रिय है, वे भव्य अर्पण नहीं, बल्कि वे साधारण समझे जाने वाले गुण हैं, जिनकी हम प्रायः उपेक्षा करते हैं :

  • मृदु वाणी
  • क्षमा
  • करुणा

यहाँ तक कि उनका भयानक रूप भी उनकी कोमलता का आवरण है। उनका संहार नृत्य जागरण का नृत्य है — हमारे लिए। वे माया को काटती हैं ताकि हम अंततः देख सकें।

साधना के पवित्र शरणस्थान में आप उन्हें अपने भय, संदेह और मुखौटे अर्पित करें।
क्योंकि वे दूर नहीं हैं। वे पहले से ही आपके हृदय में जीवित हैं।
और वे प्रतीक्षा में हैं — तलवार खींची हुई, बाहें फैलाकर — आपका अपने घर में स्वागत करने के लिए।


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