इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- माँ का उद्गम एवं सर्वोच्चता
- माँ का स्वरूप एवं प्रतीकात्मकता
- माँ का दशमहाविद्याओं में स्थान
- माँ की कृपा की एक कथा
- माँ के मंत्र-अभ्यास
- 'तंत्र साधना' ऐप द्वारा उनका आह्वान
माँ भुवनेश्वरी हिन्दू तांत्रिक परम्परा में अत्यन्त पूज्य देवियों में से एक हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तथा उसके त्रैलोक्य की अधिष्ठात्री जगन्माता का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे दश महाविद्याओं में चतुर्थ हैं और उस दिव्य स्त्री-तत्त्व की मूर्तरूप हैं जो सम्पूर्ण सृष्टि का सर्जन, पालन तथा अतिक्रमण करती है।
उनका नाम निष्पन्न है ‘भुवन’ से, जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड, तथा ‘ईश्वरी’ से, जिसका अर्थ है देवी; अतः इसका शाब्दिक अर्थ है ‘ब्रह्माण्ड की महारानी।’
माँ का उद्गम एवं सर्वोच्चता
माँ भुवनेश्वरी का प्राकट्य सूर्यदेव द्वारा त्रैलोक्य की सृष्टि से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है।
जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अन्धकार से आच्छादित था, तब सूर्यदेव प्रकट हुए और ऋषियों ने उन्हें सोम (दिव्य अमृत) अर्पित करते हुए उनसे प्रार्थना की कि वे जीवों के निवास हेतु तीनों लोकों की रचना करें।
इस ब्रह्मांडीय सृष्टि-प्रक्रिया में दशमहाविद्याओं में तृतीय, माँ त्रिपुर सुंदरी, प्रधान शक्ति रूप में उपस्थित थीं, जिनके द्वारा सूर्यदेव ने ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति की।
किन्तु जब त्रैलोक्य की स्थापना हो चुकी, तब माँ त्रिपुर सुंदरी ने उपयुक्त रूप धारण करके इन लोकों में व्याप्त होकर उन पर अधिराज्य किया, और इसी प्रकार वे ‘भुवनेश्वरी’ अर्थात् ‘भुवनों की अधिष्ठात्री’ के नाम से प्रसिद्ध हुईं।
एक अन्य आख्यान में वर्णित है कि दिव्य त्रिमूर्ति — ब्रह्मा, विष्णु और शिव — एक बार इस विषय में विवाद करने लगे कि उनमें सर्वश्रेष्ठ कौन है। जब उनका यह विवाद सृष्टि-सन्तुलन में विघ्न डालने लगा, तब जगन्माता भुवनेश्वरी के रूप में प्रकट हुईं।
उन्हें अपने दिव्य धाम में ले जाकर माता ने उन्हें तीन देवियाँ दिखलायीं, जो सृष्टि, पालन तथा संहार के कार्यों में तत्पर थीं। त्रिदेव ने उन देवियों में अपना ही प्रतिबिम्ब देखा और जगन्माता की सर्वोच्चता को स्वीकारते हुए उनके चरणों में प्रणत हुए। जगन्माता ने स्वयं देवताओं को भी उनके कर्तव्य प्रदान किये।
माँ का स्वरूप एवं प्रतीकात्मकता
माँ भुवनेश्वरी एक सुंदर देवी के रूप में वर्णित है, जिनका वर्ण स्वर्णाभ है। वे उदित होते हुए सूर्य के सदृश प्रतीत होती हैं। उनके केशों में अर्धचन्द्र सुशोभित रहता है। उनके ३ नेत्र अतीत, वर्तमान और भविष्य का अवलोकन करने के उनके सामर्थ्य के द्योतक हैं। साथ ही वे माया या भ्रान्ति के आवरण से परे देखने की शक्ति भी रखते हैं।
माँ की ४ भुजाओं में से प्रत्येक हस्त दिव्य सामर्थ्य के एक विशिष्ट आयाम का प्रतीक है। २ हाथों में वे पाश तथा अंकुश धारण करती हैं, जो इस तथ्य के सूचक हैं कि वे भक्तों को प्रेम से बाँधकर उन्हें आध्यात्मिक प्रगति की ओर मार्गदर्शित करती हैं।
अन्य २ हस्तों द्वारा वे अभय-मुद्रा (निडरता प्रदान करने वाली मुद्रा) तथा वरद-मुद्रा (वरदान प्रदान करने वाली मुद्रा) का प्रदर्शन करती हैं, जिससे उनका कृपालु एवं करुणामयी स्वभाव व्यक्त होता है।
प्रायः उन्हें कमल-आसन पर विराजमान दर्शाया जाता है, जो पवित्रता और आध्यात्मिक प्रबोध का प्रतीक है।
कुछ चित्रणों में वे अपने चरण को रत्नमय पात्र पर स्थापित करती हैं, जो भौतिक समृद्धि तथा आध्यात्मिक निधियों पर उनके अधिराज्य का बोध कराता है।
माँ का दशमहाविद्याओं में स्थान
दशमहाविद्याओं में माँ भुवनेश्वरी का चतुर्थ स्थान है। वे माँ काली, माँ तारा एवं माँ त्रिपुर सुंदरी के पश्चात प्रतिष्ठित हैं।
उनकी विशिष्ट भूमिका दिव्य ज्ञान-शक्ति से सम्बद्ध है, जो वह बोधशक्ति है जिसके द्वारा समस्त प्राणी वस्तुस्थिति का अनुभव एवं अवग्रहण कर सकते हैं।
जहाँ माँ त्रिपुर सुंदरी इच्छा-शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं, वहीं माँ भुवनेश्वरी ज्ञान-तत्त्व की वह अभिव्यक्ति हैं, जो आकाश एवं विश्वचेतना के रूप में प्रकट होती है।
माँ की कृपा की एक कथा
माँ भुवनेश्वरी की कृपा से सम्बद्ध एक अद्भुत सत्यकथा एक ऐसे बाल ब्राह्मण की है जो जन्म से ही बौद्धिक दुर्बलता से पीड़ित था। उसकी स्थिति का आघात सह न पाने के कारण उसके माता-पिता का देहान्त हो गया और वह बालक अनाथ हो गया।
वह ग्राम-ग्राम भटकता रहा, किन्तु जहाँ भी गया, तिरस्कार और उपेक्षा का ही सामना करता रहा।
निराश होकर वह महाराष्ट्र के भिलवडी ग्राम स्थित माँ भुवनेश्वरी के मन्दिर पहुँचा और ३ दिनों तक निराहार-निरजल देवी के समक्ष बैठा रहा। अपनी पीड़ा में उसने अपनी जिह्वा काटकर देवी को अर्पित कर दी और उनसे दर्शन की याचना करते हुए कहा कि यदि वे प्रकट न हुईं तो वह अपना जीवन त्याग देगा।
तब देवी उसके स्वप्न में प्रकट हुईं, और उन्होंने समझाया कि यद्यपि वे उसके कर्मफल को परिवर्तित नहीं कर सकतीं, किन्तु नदी के पार एक महात्मा उसकी सहायता कर सकते हैं।

नदी के पार उसे अक्कलकोट स्वामी समर्थ एक औदुम्बर-वृक्ष के नीचे समाधिस्थ मिले। जिह्वा कट जाने के कारण वह वाणी से कुछ कह नहीं सका, किन्तु करुणामयी संत ने उसकी व्यथा भलीभाँति समझ ली।
स्वामी समर्थ ने अपना हस्त उसके पृष्ठ पर फेर दिया, और चमत्कारवश उसकी जिह्वा पुनः सुस्थापित हो गई।
इस अद्भुत उपचार ने यह दर्शाया कि दिव्य कृपा देवी एवं सिद्ध पुरुष — दोनों के माध्यम से प्रवहमान हो सकती है और सच्चा श्रद्धाभाव इस कृपा को प्रकट कर सकता है।
माँ के मंत्र-अभ्यास
माँ भुवनेश्वरी साधना अथवा माँ भुवनेश्वरी पूजन से सम्बद्ध आध्यात्मिक अभ्यास साधक को लौकिक सफलता एवं आध्यात्मिक साक्षात्कार — दोनों की ओर एक समग्र मार्ग प्रदान करते हैं।
यह साधना परम्परानुसार शुभ अवसरों पर आरम्भ की जाती है, विशेषतः भुवनेश्वरी प्राकट्य दिवस अथवा भुवनेश्वरी जयन्ती पर, जब माता का प्रथम प्राकट्य हुआ था। पूर्णिमा के दिन भी इस साधना का आरम्भ किया जा सकता है।
साधक सामान्यतः रात्रि ९ बजे के पश्चात् साधना आरम्भ करते हैं, श्वेत अथवा पीत वस्त्र धारण कर उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करके।
इस साधना का मूलतत्त्व विशिष्ट यंत्रों तथा पवित्र ज्यामितीय आरेखों के प्रयोग में निहित है, जो ध्यान एवं ऊर्जा-संकेन्द्रण के हेतु आधार-बिन्दु रूप में कार्य करते हैं। उन्नत साधक प्रायः २१ दिवसीय साधना-चक्र में प्रवृत्त होते हैं, जिनमें वे विशिष्ट मंत्रों का जप करते हुए कठोर आध्यात्मिक अनुशासन का पालन करते हैं।
जो साधक इस साधना को निष्ठा एवं श्रद्धा के साथ सम्पन्न करता है, वह शीघ्र ही अनुभव करने लगता है कि माता की शक्ति उसमें प्रवाहित हो रही है, उसे आनन्द एवं शान्ति से परिपूर्ण कर रही है, और प्रत्येक परिस्थिति में उसका मार्गदर्शन तथा संरक्षण कर रही है।
वह माता के प्रेम एवं करुणा का अनुभव न केवल अपने लिए करता है, अपितु समस्त प्राणियों के लिए करता है — और यही उसकी चैतन्यता में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का चिह्न होता है।
'तंत्र साधना' ऐप द्वारा उनका आह्वान
यदि आपको माँ भुवनेश्वरी की आराधना करने की प्रेरणा अनुभव हो रही है और आप यह नहीं जानते कि आरम्भ कैसे करें, तो हमारे पास आपके लिए एक उपयुक्त उपाय है।
आध्यात्मिक साधक अब ओम स्वामी द्वारा निर्मित 'तंत्र साधना' ऐप के माध्यम से माँ भुवनेश्वरी की प्रामाणिक तांत्रिक साधना तक पहुँच सकते हैं। ओम स्वामी एक विख्यात सन्यासी तथा पूर्व टेक आंत्रप्रेनुअर हैं, जिन्होंने वैदिक एवं तांत्रिक साधना में ३ दशकों से अधिक का जीवन समर्पित किया है।

चित्र श्रेयांकन — 'तंत्र साधना' ऐप
अपने बहु-मिलियन डॉलर मूल्य के सॉफ़्टवेयर उद्योग का त्याग करके हिमालय में आध्यात्मिक जागरण हेतु संन्यास लेने वाले ओम स्वामी ने स्वयं दशमहाविद्याओं में से प्रत्येक का अनुभव एवं आह्वान किया है। उनकी दीर्घ आध्यात्मिक यात्रा में उन्होंने १५,००० घण्टों से अधिक समय एकान्त में ध्यान में व्यतीत किया। वही 'तंत्र साधना' ऐप की आधारशिला है।
यह ऐप साधकों को माँ भुवनेश्वरी सहित समस्त दशमहाविद्याओं के जागृत मंत्रों तथा गुह्य साधनाओं तक पहुँच प्रदान करती है, जिसमें मग्नकारी 3डी परिवेश और क्रमबद्ध मार्गदर्शन सम्मिलित है।
साधक प्रबल अनुष्ठानों में प्रवृत्त हो सकते हैं, जैसे शव-साधना, खण्ड-मुण्ड साधना तथा पंच-मुण्डि साधना, जो परम्परानुसार केवल दीक्षित साधकों हेतु आरक्षित होती हैं।
यह ऐप महाविद्याओं के शक्तिशाली एवं ऊर्जा-संवेहित मंत्र प्रदान करती है, जो पूर्वकाल में केवल किसी सिद्ध गुरु से प्रत्यक्ष दीक्षा द्वारा ही सुलभ होते थे।
इस ऐप की विशेषता इसका क्रमबद्ध विन्यास है। साधना-यात्रा का आरम्भ साधक माँ काली की आराधना से करता है, जो दश महाविद्याओं में प्रथम पूज्य हैं, और अन्ततः माँ कमलात्मिका की उपासना द्वारा पूर्ण करता है।
प्रत्येक महाविद्या के साथ ११-दिवसीय पूर्वानुष्ठान होता है, जिसमें मंत्र जप तथा यज्ञ सम्मिलित रहते हैं। इसके पश्चात् ही मुख्य साधना उपलब्ध होती है।
मुख्य साधना २१ से ४० दिनों तक की होती है। यह उस विशेष महाविद्या पर निर्भर करती है।
यह पद्धति यह सुनिश्चित करती है कि एक साधक ने उन्नत साधनों में प्रवृत्त होने से पूर्व देवी के प्रति गहन भक्ति को उत्पन्न कर लिया है।
संदर्भ: greatgurusofindia.wordpress.com