तंत्र के अतिगूढ़ गहनतम रहस्यों में माँ काली एवं भगवान् कृष्ण को एकसूत्र में बाँधने वाले प्रतीकार्थ, शास्त्रीय दृष्टिकोण तथा आध्यात्मिक रहस्योद्घाटन के विषय में पढ़ें।
इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- भगवान् कृष्ण द्वारा माँ काली का आह्वान
- माँ काली के स्रोत, माँ दुर्गा, का आह्वान
- कृष्ण तंत्र — कृष्ण-काली का गूढ़ सम्बन्ध
- 'तंत्र साधना' ऐप द्वारा उनकी जागृति
साधनात् सिद्धिमाप्नोति साधनात् परमं सुखम्।
साधनं हि परं धर्मं नास्ति साधनसमम्॥
साधना से आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त होती है; साधना से परमानन्द की अनुभूति होती है। साधना ही परम धर्म है—निष्ठापूर्वक की गई आध्यात्मिक साधना से बढ़कर कोई सत्कर्म नहीं है।
प्रथम दृष्टि में चंचल एवं मनोहर भगवान् कृष्ण, उग्र एवं रहस्यमयी माँ काली से मानो सर्वथा भिन्न प्रतीत होते हैं। किन्तु इन विपरीत प्रतीत होने वाले रूपों के अंतर्गत सनातन धर्म की प्राचीन तांत्रिक परम्पराओं में निहित एक गहन एवं रहस्यमय सम्बन्ध विद्यमान है।
तंत्र साधना की दृष्टि से माँ काली और भगवान् कृष्ण का सम्बन्ध द्वैत का नहीं, अपितु दैवीय परस्पर–पूरकता का है, जहाँ रूप और अरूप, करुणा और संहार, पुरुष और स्त्री तत्त्व, पारमार्थिक एकता में लय होते हैं।
काली एवं कृष्ण — एक ही ब्रह्मांडीय मुद्रा के २ पहलू
माँ काली और भगवान् कृष्ण, एक ही परम तत्त्व ब्रह्म के २ प्रबल आयाम हैं। माँ काली काल, रूपांतरण और संहार की अनियंत्रित, अप्रशोधित शक्ति का प्रतीक हैं, जबकि भगवान् कृष्ण चैतन्य, आनन्द और विश्वलीला का प्रतिनिधित्व करते हैं।
काली–कृष्ण सम्बन्ध केवल दार्शनिक नहीं, अपितु अनुभवगत भी है।
देवी भागवत पुराण तथा रुद्रयामल तंत्र जैसे कुछ तंत्रग्रन्थों में भगवान् कृष्ण द्वारा जगन्माता की, विशेषतः माँ काली के स्वरूप की उपासना का उल्लेख मिलता है, जिसके द्वारा उन्होंने सिद्धियों की प्राप्ति तथा परम सत्य के साथ गहन एकत्व का अनुभव किया।
भगवान् कृष्ण द्वारा माँ काली का आह्वान
महाभारत के महान युद्ध से पूर्व, ऐसा कहा जाता है कि स्वयं भगवान् कृष्ण ने माँ काली का आह्वान किया था।
यद्यपि वे भगवान् विष्णु के पूर्णावतार थे, तथापि वे भलीभाँति जानते थे कि धर्म के विजय हेतु शक्ति, अर्थात् दिव्य स्त्रीतत्त्व का आश्रय आवश्यक है। इसी कारण अमावस्या की रात्रि में, वे पाण्डवों के शिविर से चुपचाप निकल पड़े।
एक एकान्त स्थल पर, वृक्ष के नीचे पहुँचकर, उन्होंने भूमिपटल पर एक यंत्र (दिव्य स्त्रीतत्त्व का आह्वान करने वाला पवित्र रेखाचित्र) अंकित किया तथा एक छोटी ज्योति प्रज्वलित की।
गंभीर श्रद्धा के साथ वे माँ काली के महामंत्रों का जप करने लगे। उनके मंत्रों की गूँज उस स्थिर रात्रि को भेदती हुई उग्र देवी का आह्वान करने लगी।
धीरे-धीरे वातावरण अत्यन्त घना एवं विद्युत्समान ऊर्जामय हो उठा। तभी उनके समक्ष माँ काली प्रकट हुईं — अनन्त आकाश जैसी गहन श्यामवर्णा, प्रज्वलित नेत्रों वाली, जिह्वा बाहर निकली हुई, बिखरे केशों से ज्योतिर्मयी आभा प्रकट करती हुईं। ऐसे अद्भुत तेजस्वी स्वरूप में वे उनके सम्मुख अवतरित हुईं।
विनम्रतापूर्वक भगवान् कृष्ण ने युद्ध में विजय तथा विश्व-संतुलन की पुनर्स्थापना हेतु माँ से आशीर्वाद की याचना की।
दया से भरी देवी की दृष्टि विश्वनाथ पर पड़ी, जो जोड़े हुए हाथों के साथ उनके समक्ष खड़े थे। माँ ने उन्हें आशीर्वाद दिया और आश्वासन दिया कि उनकी दिव्य शक्ति पाण्डवों को सभी विघ्नों पर विजय दिलाएगी।
इसी प्रकार, भगवान् कृष्ण का युद्धभूमि पर उपस्थित होना स्वयं दिव्य मातृशक्ति के अजेय सामर्थ्य का द्योतक बन गया, जिसने पाण्डवों को विजय दिलाई और धर्म की पुनर्स्थापना की।
भगवान् कृष्ण द्वारा माँ काली का आह्वान शक्ति-तत्त्व के महत्त्व का प्रतीक है — वह दिव्य स्त्रीशक्ति जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गति देती है। शक्ति के बिना तो स्वयं शिव भी शव बन जाते हैं।
माँ का यह दिव्य सान्निध्य ही सृष्टि का संतुलन बनाये रखता है, आत्मिक जागृति कराता है और बाह्य एवं आन्तरिक — दोनों प्रकार की अन्धकारमयी शक्तियों पर विजय सुनिश्चित करता है।

माँ काली के स्रोत, माँ दुर्गा, का आह्वान
विविध हिन्दू शास्त्रों में भगवान् कृष्ण और जगन्माता के सम्बन्ध को उपासना एवं भक्ति के माध्यम से निरूपित किया गया है। उदाहरणार्थ, महाभारत के भीष्मपर्व, अध्याय 23 में, भगवान् कृष्ण अर्जुन को निर्देश देते हैं कि वे कुरुक्षेत्र युद्ध की पूर्वसन्ध्या पर स्वयं को शुद्ध करके माँ दुर्गा का स्तोत्र पाठ करें, जिससे शत्रुओं पर विजय सुनिश्चित हो सके।
धृतराष्ट्र–सेना को समीप आते देखकर कृष्ण ने अर्जुन से कहा:
“हे महाबाहो, युद्ध की पूर्वरात्रि में स्वयं को पवित्र करके दुर्गा का स्तोत्र उच्चारण करो, जिससे शत्रु का पराभव हो।”
{टिप्पणी – भीष्मपर्व २३.४–१६ इन श्लोकों का स्तोत्र दुर्गा स्तुति इस पी डी एफ में उपलब्ध है।}
देवीमाहात्म्य में वर्णित है कि रक्तबीज के साथ हुए संग्राम में माँ दुर्गा के त्रिनेत्र से माँ काली प्रकट हुईं। वे उग्र, भयानक और प्रचण्ड रूप धारण कर प्रत्येक रक्तबिन्दु को भूमिपर गिरने से पूर्व ही चाट लेती हैं और अन्ततः सम्पूर्ण राक्षस को निगल जाती हैं।
अतः माँ दुर्गा का आह्वान करना वस्तुतः युद्ध में माँ काली की उग्रशक्ति का आह्वान करना भी था।
इसी प्रकार, श्रीमद्भागवतम के दशम स्कन्ध, अध्याय २२ में वर्णित है कि नन्द–व्रज की कुमारिकाएँ भगवान् कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माँ कात्यायनी (माँ दुर्गा का ही एक स्वरूप) की उपासना का व्रत करती हैं।
ये कथाएँ वेदिक और तांत्रिक परम्पराओं में पुरुष–तत्त्व और स्त्री–तत्त्व की अंतर्निहित एकता को द्योतित करती हैं, तथा आध्यात्मिक यात्रा में दोनों की परस्पर–पूरक महत्ता को प्रबल रूप से प्रतिपादित करती हैं।

कृष्ण तंत्र — कृष्ण-काली का गूढ़ सम्बन्ध
कृष्ण तंत्र व्यापक तांत्रिक परम्परा के अन्तर्गत एक अपेक्षया अल्पप्रसिद्ध किन्तु अत्यन्त शक्तिशाली धारा है, जो भगवान् कृष्ण और जगन्माता — विशेषतः उनकी उग्र स्वरूपा माँ काली के परस्पर सम्बन्ध पर केन्द्रित है।
शाक्त-वैष्णव सम्मिलन में निहित यह तंत्र, भक्ति की साधना और आध्यात्मिक रूपान्तरण की प्राप्ति हेतु अनुष्ठान-निर्देश, ध्यान-प्रक्रियाएँ तथा मंत्र प्रदान करता है। इसकी मूल शिक्षाओं को एक श्लोक इस प्रकार निरूपित करता है:
"जो साधक भगवान् कृष्ण का ध्यान जगन्माता के पति के रूप में करता है और अपनी चैतन्यधारा को उनकी चैतन्यधारा में विलीन कर देता है, वह समस्त द्वन्द्वों से परे होकर सिद्धि को प्राप्त करता है।”
यह ग्रन्थ भक्ति और आनन्दमयी उपासना को ब्रह्माण्ड की अद्वैत प्रकृति की अनुभूति के साधन रूप में प्रतिपादित करता है। यह यह भी दर्शाता है कि भगवान् कृष्ण, यद्यपि चंचल और प्रेममय लीला स्वरूप हैं, तथापि वे अंतःकरण में देवी के आतंरिक पति का भी मूर्त स्वरुप हैं, जो तांत्रिक साधना में दैवीय पुरुष और स्त्री शक्तियों की अविभाज्यता को स्पष्ट करता है।
कुछ साधकों के मतानुसार भगवान् कृष्ण केवल लीला पुरुषोत्तम ही नहीं हैं, अपितु देवी के उग्रतम स्वरूपों में भी उनके अंतःसहचर रूप में प्रतिष्ठित हैं।
आधुनिक युग में कृष्ण तंत्र पर विशेष रूप से आधारित मौलिक ग्रन्थ उपलब्ध होना कठिन है, और जो भी जानकारी मिलती है, वह प्रायः ब्लॉगों, लेखों तथा ऑनलाइन स्रोतों से प्राप्त होती है। कृष्ण तंत्र और उसकी शिक्षाओं पर विशेष चर्चा करने वाले २ ग्रन्थ कालिविलास तंत्र तथा टोडल तंत्र हैं।
- कालिविलास तंत्र: यह संस्कृत ग्रन्थ है और बंगाल की तांत्रिक परम्पराओं से सम्बद्ध माना जाता है। इसकी मूल भाषा संस्कृत है, जिसमें भगवान् कृष्ण को एक सुवर्णवर्णा देवी के पुत्र रूप में निरूपित किया गया है, जो कामानुरागवश श्यामवर्णा हो गईं। इसमें जगन्माता के साथ कृष्ण के एकत्व पर बल दिया गया है, विशेषतः माँ के काली स्वरुप में।
- टोडल तंत्र: इस ग्रन्थ में भगवान् कृष्ण को माँ काली के सहचर रूप में चित्रित किया गया है, तथा उन्हें महाविद्याओं में सम्मिलित किया गया है। यह तांत्रिक साधना में दैवीय पुरुष और स्त्री शक्तियों की अविभाज्यता को प्रतिपादित करता है।
कृष्ण तंत्र में माँ काली को भयावह नहीं माना गया, अपितु ऐसी शक्ति के रूप में देखा गया है जो माया का भेदन करके साधक को सत्य का बोध कराती है। भगवान् कृष्ण, जो स्वयं माया के परम भोक्ता हैं, माँ काली के साथ नृत्य करते हैं, जिससे साधक को माया से परे जाने का मार्ग ज्ञात होता है।
काली और कृष्ण का यह नृत्य ब्रह्माण्ड की लय और ताल का प्रतीक है, जहाँ सृष्टि और संहार एकसाथ घटित होते रहते हैं।
“माँ की गोद में स्वयं श्यामसुन्दर भी शिशु हो जाते हैं। यही तंत्र का रहस्य है, जहाँ शक्ति ही समस्त अस्तित्व का आधार है।”
— कौलज्ञाननिर्णय

माँ काली भक्ति अज्ञात में समर्पण का मार्ग है — दिव्य के अप्रशोधित, उग्रतम स्वरूप का प्रेमपूर्ण आलिंगन। दूसरी ओर, भगवान् कृष्ण भक्ति आनन्द, संगीत और आध्यात्मिक रस स्वाद में रमण करती है।
किन्तु दोनों ही मार्ग अहंकार का लय कर देते हैं।
इनको जोड़ने वाली कड़ी है अन्तःस्थ भक्ति-अग्नि। काली और कृष्ण, दोनों ही साधक के अज्ञान का नाश करते हैं — काली संहार द्वारा और कृष्ण मोह द्वारा।
तंत्र साधना की उन्नत अवस्थाओं में साधक प्रायः अनुभव करता है कि काली और कृष्ण एक ही दिव्य शक्ति हैं, जो आत्मा के विभिन्न आयामों को जागृत करने हेतु भिन्न आदर्शरूपों में प्रतिबिम्बित होती हैं।
'तंत्र साधना' ऐप द्वारा उनकी जागृति
'तंत्र साधना' ऐप साधकों को एक अद्वितीय और पवित्र स्थल प्रदान करती है, जहाँ वे इन आयामों का सुरक्षित एवं प्रामाणिक अन्वेषण कर सकते हैं। निर्देशित ध्यान, मंत्र तथा आन्तरिक जागृति हेतु व्यवहारिक साधनों के माध्यम से यह ऐप प्राचीन परम्पराओं और आधुनिक आवश्यकताओं के बीच एक सेतु का कार्य करती है।
चाहे आप माँ काली के उपासक हों अथवा भगवान् कृष्ण के, 'तंत्र साधना' ऐप आपको दोनों ऊर्जाओं का संतुलित और समन्वित अनुभव कराती है।
यहाँ आपको माँ काली तथा दशमहाविद्याओं के अन्य ९ स्वरूपों के अनुष्ठान और जागृत मंत्र प्राप्त होंगे, और साथ ही परम्परा और प्रामाणिकता पर आधारित शिक्षाएँ तथा समुदाय-समर्थन भी।
आज इस सम्बन्ध का महत्त्व क्यों है?
पुरुष बनाम स्त्री, प्रकाश बनाम अन्धकार, तर्क बनाम भावना — ऐसे द्वन्द्वों से खण्डित इस युग में काली और कृष्ण का संगम अद्वैत का परम सत्य सिखाता है। यह साधकों को स्मरण कराता है कि वे नाम-रूप से परे उठकर सम्पूर्णता में ईश्वर का आराधन करें।
यह अनुभूति केवल बौद्धिक नहीं, अपितु अनुभवजन्य है — और यही तंत्र साधना मार्ग का ध्येय है।
“वास्तविक तंत्र अन्तःस्थ द्वन्द्वों के संयोग में है। जब काली नृत्य करती हैं और कृष्ण मुरली बजाते हैं, तब आपका पुनर्जन्म होता है।”
तांत्रिक दृष्टिकोण में माँ काली और भगवान् कृष्ण भिन्न रूपों में एक ही तत्त्व हैं। इस सत्य का उदाहरण कृष्णानन्द की उपासना में मिलता है, जिन्होंने दोनों को दिव्य के अविभाज्य स्वरूप मानकर आराधना की।
जब आप तंत्र साधना के मार्ग पर चलते हैं, तब आप इसे केवल विचार के रूप में नहीं, अपितु एक जीवित स्पन्दन के रूप में अनुभव करते हैं। काली के ह्रदय-कम्पन और कृष्ण की बाँसुरी के मध्यान्तर की शान्ति में आप जान लेते हैं:
संहारक और प्रेमी सदा से एक ही रहे हैं।
संदर्भ: Om Swami. The Legend of the Goddess, os.me, कौलज्ञाननिर्णय: प्राचीन तांत्रिक ग्रन्थ, रूद्रयामल तंत्र (अनूदित अंश), देवी भागवत पुराण - स्कंध १-१२, tantrasadhana.app, weareferment.net, Wisdom Library, Vedabase, Krishna Katha, adishakti.org (PDF), Devi Mahatmya – Krishna Kaali, Shiva Shakti – Krishna & Kali, Srichakra108 Blog
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