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इस लेख में आप पढ़ेंगे :

🌑 माँ काली के उग्र किन्तु करुणामयी स्वरूप का गहन सत्य
🏡 कैसे माँ काली की साधना गृहस्थों द्वारा आध्यात्मिक एवं भौतिक पथों के संतुलन हेतु की जा सकती है
📜 पारिवारिक जीवन जीने वालों के लिये देवी उपासना के आशीर्वादों के विषय में पवित्र शास्त्र क्या कहते हैं
🕊️ रामप्रसाद सेन एवं श्री रामकृष्ण जैसे प्रेरणादायी गृहस्थ संत, जिन्होंने सांसारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए भक्ति में जीवन व्यतीत किया
📲 कैसे आधुनिक साधक ‘तंत्र साधना’ ऐप का उपयोग करके दैनन्दिन जीवन में प्रामाणिक, नित्य साधना कर सकते हैं

माँ काली के वास्तविक स्वभाव का बोध

पहली दृष्टि में माँ काली भयंकर प्रतीत होती हैं — उनका श्याम वर्ण, बिखरे केश, लोल जिह्वा एवं कटे हुए मस्तकों की माला। परन्तु वे केवल भयावह प्रतीक नहीं हैं।

माँ काली समाज के “आदर्श” नारीत्व के चित्रण का प्रतिपक्ष हैं। वे उस सत्य की मूर्ति हैं जो सौन्दर्य, लज्जा और मर्यादा की संकीर्ण परिभाषाओं को अस्वीकार करता है, विशेषतः वे जो स्त्रियों और मातृत्व पर अधिरोपित की गई हैं।

गृहस्थ के लिये — जिसका जीवन प्रायः सामाजिक अपेक्षाओं के इर्द-गिर्द घूमता है — माँ काली का यह स्वरूप स्वाभाविक रूप से चकित या अस्थिर कर देने वाला प्रतीत हो सकता है।

किन्तु इस भयप्रद रूप के भीतर ही उनका अत्यन्त कोमल सार निहित है। उनके विस्तृत नेत्रों के पीछे करुणा की दृष्टि छिपी है; उनकी लोल जिह्वा के भीतर स्नेहिल स्मित विद्यमान है। वे जगन्माता हैं — समस्त सृष्टि की जननी।

माँ काली के अनेक नामों में से एक है “कृष्णा,” जिसका अर्थ प्रायः “श्यामवर्णा” कहा जाता है। परन्तु इसका अर्थ “आकर्षित करने वाली” भी है। माँ काली परम आकर्षणी शक्ति हैं — वह चुम्बकीय शक्ति जिनकी कृपा भक्तों को माया के आवरणों के पार सत्य के मूल तक ले जाती है।

माँ काली का एक रचनात्मक चित्रण जिसमें वे अपने 4 हाथों से विभिन्न मुद्राएँ दिखा रही हैं।
स्रोत : i.pinimg.com

माँ काली की साधना के विषय में भ्रान्तियाँ

यद्यपि अनेक लोग सहज रूप से माँ काली की उपासना की ओर आकृष्ट होते हैं, कुछ गृहस्थ संकोच करते हैं, यह सोचकर कि उनकी साधना से पारिवारिक जीवन में दुर्भाग्य या अव्यवस्था आ सकती है।

किन्तु यह भय अज्ञान से उत्पन्न होता है। किसी भी रूप में जगन्माता की साधना करना कभी हानिकारक नहीं होता। कौनसी माता अपने बच्चे को उनके प्रेम की खोज करने के कारण दण्ड देगी?

वास्तव में माँ काली की कृपा शुद्ध, सुरक्षित और उन्नत करती है। उनकी ऊर्जा भक्त के लिये विनाशकारी नहीं, बल्कि परिवर्तनकारी होती है।

गृहस्थ साधना हेतु शास्त्रीय समर्थन

हमारे शास्त्र गृहस्थों को देवी साधनाएँ करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं, ताकि वे भौतिक और आध्यात्मिक मार्गों का संतुलन साध सकें। इनमें माँ काली की साधना भी सम्मिलित है। ये साधनाएँ बाह्य कल्याण एवं आन्तरिक विकास, दोनों को पोषित करती हैं।

नीचे कुछ पवित्र उदाहरण दिये गये हैं, जो इस सत्य की पुष्टि करते हैं।

देवीभागवत पुराण से

गृहस्थोऽपि सदा देवीं पूजयित्वा विशेषतः।
लभते सर्वसौख्यानि मोक्षं च परमान् यथा॥

अनुवाद :
“गृहस्थ भी यदि नियमित रूप से देवी की भक्तिपूर्वक उपासना करे, तो वह सभी प्रकार के सुख तथा परम मोक्ष को प्राप्त करता है।”

व्याख्या :

शाक्त परम्परा में देवी भक्ति और ज्ञान, दोनों की मूर्ति हैं।

सांसारिक उत्तरदायित्वों में निमग्न व्यक्ति भी उनकी निरन्तर एवं हृदयपूर्ण उपासना द्वारा मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

जब गृहस्थ निष्ठापूर्वक देवी पूजा करता है, तब उसके दैनन्दिन कर्म पवित्र हो जाते हैं, मन शुद्ध होता है और सांसारिक जीवन स्वयं मुक्ति का साधन बन जाता है।

करुणामयी एवं सुलभ देवी भक्त को लौकिक आनन्द और आध्यात्मिक स्वतंत्रता, दोनों प्रदान करती हैं।

महाकाली स्तोत्र से

काली कपालिनी दुर्गा क्षेमकरी शिवप्रिया।
भक्तानां वाञ्छितं दद्यात् गृहिणां श्रेयसं शुभम्॥

अनुवाद :
“कपाल धारण करने वाली काली, कल्याणदायिनी दुर्गा, शिवप्रिया अपने भक्तों की सभी कामनाएँ पूर्ण करें और गृहस्थों को शुभता एवं परम कल्याण प्रदान करें।”

व्याख्या :

यहाँ माता को उनके कपालधारिणी माँ काली के उग्र रूप में आमन्त्रित किया गया है, किन्तु श्लोक उन्हें “क्षेमकरी” अर्थात् “कल्याणदायिनी” कहता है।

उनकी बाह्य उग्रता के भीतर असीम करुणा छिपी है। वे अज्ञान, अहंकार और भय का नाश करती हैं और उन भक्तों की रक्षा करती हैं जो उन्हें आत्मसमर्पण करते हैं।

गृहस्थों के लिये यह इस तथ्य का संकेत है कि जगन्माता दूरस्थ या काल्पनिक सत्ता नहीं हैं। वे वह सजीव, मार्गदर्शक उपस्थिति है, जो गृह को आशीष देती हैं, विघ्न हटाती हैं और सामंजस्य एवं प्रगति की प्रेरणा देती हैं।

उनकी उपासना द्वारा दैनन्दिन जीवन ही एक पवित्र कर्म बन जाता है।

कुलार्णव तंत्र से

गृहस्थो वा वनस्थो वा यतिर् वा बाल एव वा।
विधिवत् पूजयन् देवीं सिद्धिम् आप्नोत्यविचलाम्॥

अनुवाद :
“गृहस्थ हो, वनवासी हो, संन्यासी हो अथवा बालक — जो भी विधिपूर्वक देवी की उपासना करता है, वह अचल सिद्धि प्राप्त करता है।”

व्याख्या :

यह श्लोक जाति, आश्रम एवं आयु की सभी सीमाएँ मिटा देता है। माता किसी में भेद नहीं करतीं।

उनका प्रेम अशर्त है; उनकी कृपा सार्वभौम है। महत्त्व रखती है केवल निष्ठा, परिस्थिति नहीं।

बालक की सरल प्रार्थना, योगी का ध्यान, अथवा गृहस्थ का नित्य अर्पण — जब भक्ति से किये जाते हैं, तब सबमें समान शक्ति विद्यमान होती है।

कुलार्णव तंत्र हमें स्मरण कराता है कि माँ काली की करुणा पदक्रम से परे है। वे प्रत्येक आत्मा से वहीं मिलती हैं जहाँ वह स्थित है।

दक्षिणा काली का कलात्मक चित्रण, जिसमें वे शिव के ऊपर स्थित हैं और एक सियार पार्श्व से उनकी ओर निहार रहा है।
स्रोत : i.pinimg.com

माँ काली के आश्वासन के संकेत

अधिकांश पारम्परिक चित्रणों में माँ काली को दो प्रभावशाली मुद्राओं — अभय एवं वरद — के साथ दर्शाया गया है, जो दिव्य संरक्षण और उदारता के प्रतीक हैं।

  • अभय मुद्रा (निर्भयता का संकेत) :
    उनका दायाँ ऊर्ध्व हस्त ऊपर की ओर उठा हुआ रहता है; अंजलि बाहर की ओर और अँगुलियाँ ऊपर की दिशा में। यह मुद्रा रक्षण और सुरक्षा के आश्वासन का प्रतीक है। इस मुद्रा के माध्यम से माँ काली अपने भक्तों से कहती हैं, “डरो नहीं, मैं तुम्हारी रक्षा के लिये उपस्थित हूँ।”
  • वरद मुद्रा (वरदान प्रदान करने का संकेत) :
    उनका दूसरा दायाँ हाथ नीचे की ओर विस्तृत रहता है; अंजलि बाहर की ओर खुली होती है। यह मुद्रा करुणा, आशीर्वाद और इच्छापूर्ति का प्रतीक है। यह भक्तों को आश्वस्त करती है कि उनकी सच्ची प्रार्थनाएँ सुनी जाती हैं और माँ काली उन्हें लौकिक तथा आध्यात्मिक, दोनों वरदान प्रदान करती हैं।

माँ काली की साधना के फल और लाभ

माँ काली की साधना संतुलन का मार्ग है, जो भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों प्रकार की परिपूर्णता प्रदान करता है। अशुभता को आमन्त्रित करने के स्थान पर उनकी उपासना साहस, स्पष्टता और समृद्धि को दैनन्दिन जीवन में लाती है।

उनकी साधना आन्तरिक बल और निर्भयता का निर्माण करती है। भक्त जीवन की चुनौतियों का सामना शान्ति और दृढ़ता से करना सीखता है, प्रतिकूलताओं को आध्यात्मिक विकास का माध्यम बनाते हुए। उनकी शक्ति से मन स्थिर होता है और भावनाएँ संयम एवं विनम्रता प्राप्त करती हैं।

दैवी संरक्षण, समृद्धि एवं मोक्ष

दैवी संरक्षण और समृद्धि
माँ काली अपने भक्तों की उग्र रक्षिका हैं। उनकी साधना दिव्य ऊर्जा का एक कवच निर्मित करती है, जो साधक को नकारात्मक शक्तियों और अदृश्य प्रभावों से रक्षण प्रदान करता है।

उसी समय, उनकी कृपा भौतिक एवं आध्यात्मिक, दोनों समृद्धियों को बन्धनरहित रूप में प्रकट करने में सहायक होती है। वे दारिद्र्य और अभाव की संहारिणी हैं, आर्थिक विघ्नों का नाश करती हैं और गृहस्थ जीवन हेतु आवश्यक साधनों का सतत प्रवाह सुनिश्चित करती हैं।

उनके आशीर्वाद केवल ऐश्वर्य ही नहीं, अपितु संतोष भी प्रदान करते हैं, भक्त को धन के विवेकपूर्ण एवं पवित्र उपयोग का शिक्षण देते हुए।

मोक्ष की प्रदायिनी
सर्वोपरी, माँ काली मोक्ष की दात्री हैं। वे माया (भ्रम) को चीर देती हैं, भक्त को आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाती हुई — वैराग्य की आवश्यकता बिना।

उनका मार्ग संसार का परित्याग नहीं, अपितु उसका पवित्रीकरण है। रसोई, कार्यस्थल, गृह — सब, जब उनकी स्मृति में देखें जाते हैं, तो पवित्र वेदी का विस्तार बन जाते हैं।

उनकी कृपा प्राप्त करने का सच्चा मार्ग

माता के आशीर्वाद कभी लेन-देन पर आधारित नहीं होते। उन्हें केवल अनुष्ठानों के द्वारा अर्जित या अर्पणों से क्रय नहीं किया जा सकता। उनकी कृपा केवल उउन्ही की ओर प्रवाहित होती है, जो साधना के मार्ग पर निष्ठा, भक्ति और सत्य के प्रति नीरव तृष्णा के साथ चलते हैं।

सच्चे साधक माँ काली के समीप इच्छाओं की सूची लेकर नहीं, अपितु उनकी उपस्थिति की पिपासा लेकर जाते हैं।

गृहस्थ के लिये इसका अर्थ है — निष्कपटता से जीवन जीना, हृदयपूर्ण प्रार्थना बनाए रखना, और दैनन्दिन कर्तव्यों के मध्य में भी उनकी दिव्य उपस्थिति का स्मरण करते रहना। प्रत्येक कर्म — जो सजगता और भक्ति से किया गया हो — उपासना बन जाता है।

माँ काली की उपासना करना, जीवन को निर्भय होकर स्वीकार करना है।

उनकी ऊर्जा गृह की सेवा से लेकर संसार का सामना करने तक प्रत्येक कर्म को पवित्र कर्म बना देती है। उनकी साधना के माध्यम से गृहस्थ इस परम सत्य को जान लेता है —
दिव्य एवं सांसारिक पृथक नहीं — वे एक ही हैं।

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का पूर्ण समर्पण में माँ काली की प्रार्थना करते हुए एक चित्र।
श्री रामकृष्ण परमहंस द्वारा माँ की आराधना
स्रोत : i.pinimg.com

माँ के मार्ग पर चले हुए गृहस्थ

इतिहास साक्षी है कि माँ काली की आराधना करने वाले अनेक श्रेष्ठ संत प्रायः स्वयं गृहस्थ थे।

रामप्रसाद सेन — पूज्य बंगाली संत, कवि और तांत्रिक — एक गृहस्थ थे, पत्नी एवं सन्तानों सहित, जिनके भक्तिपूर्ण गीत “रामप्रसादी” आज भी जगन्माता के प्रति आत्मसमर्पण के अमर स्तोत्र हैं। उनका जीवन पारिवारिक उत्तरदायित्वों और गहन आतंरिक उपासना के सुंदर संतुलन का उदाहरण था।

कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर में माँ काली के मुख्य विग्रह की एक फोटो।
दक्षिणेश्वर की माँ भवतरिणी

एक अन्य महान व्यक्तित्व, श्री रामकृष्ण परमहंस, जो माँ काली के प्रति अपने परमानन्दपूर्ण भक्ति के लिये प्रसिद्ध हैं, वे भी गृहस्थ थे। दक्षिणेश्वर मन्दिर, जहाँ उन्होंने उनकी प्रत्यक्ष आराधना एवं दर्शन किया, रानी रश्मोनी के आवासीय क्षेत्र का भाग था।

रात्रि के समय कोलकाता में स्थित दक्षिणेश्वर काली मंदिर की एक सुन्दर, प्रकाशयुक्त फोटो।
दक्षिणेश्वर मन्दिर परिसर
स्रोत : upload.wikimedia.org

ये उदाहरण यह सिद्ध करते हैं कि माँ काली केवल श्मशान में निवास करने वाली नहीं हैं। यदि उन्हें प्रेम और भक्ति से आमन्त्रित किया जाए, तो वे आपके गृह और हृदय, दोनों में प्रवेश करती हैं।

श्री रामकृष्ण का उपदेश

श्री रामकृष्ण ने कहा था —

“एक हाथ से संसार के कार्य करो, और दूसरे हाथ से जगन्माता के चरणों को थामे रहो।
कार्य पूर्ण कर लेने पर दोनों हाथों से उनके चरण पकड़ लो।”

इन सरल शब्दों में गृहस्थों हेतु तंत्र साधना का सार निहित है — कर्तव्य में स्थिर रहते हुए भक्ति में लीन रहना। जगन्माता न तो अनुष्ठान, न जाति, न जीवनशैली से योग्यता मापती हैं। वे केवल निष्ठा, आकुल हृदय और आत्मसमर्पण करने के साहस को देखती हैं।

गृहस्थ हेतु साधना का एक आधुनिक मार्ग

जो लोग माँ काली की उपासना में नए हैं या व्यस्त जीवन के मध्य मार्गदर्शन चाहते हैं, उनके लिये ‘तंत्र साधना’ ऐप एक उत्तम आरम्भिक साधन है।

यह माध्यम साधकों को प्रदान करता है:

  • खरे मंत्र एवं मार्गदर्शित जप-अभ्यास।
  • चरणबद्ध निर्देश तथा गृहस्थों के लिये सरलीकृत नित्य काली साधना की दीक्षा।
  • भक्ति और ध्यान का समन्वय करने वाली शिक्षाएँ, जो नवशिक्षार्थियों एवं प्रबुद्ध साधकों, दोनों के लिये उपयुक्त हैं।
  • सांसारिक उत्तरदायित्वों के मध्य भी साधना की नियमितता बनाए रखने हेतु समर्थन,यह स्मरण कराते हुए कि माँ काली की कृपा काल या स्थान से बँधी नहीं है।

जब इन पवित्र साधनों का प्रयोग श्रद्धाभाव से किया जाता है, तो भक्त माँ काली से अपने सम्बन्ध को अधिक गहन करते हैं और अपने दैनन्दिन जीवन में उनकी सजीव उपस्थिति का अनुभव करता है।

जगन्माता की सजीव उपस्थिति

जो लोग सांसारिक उत्तरदायित्वों के मध्य भी माँ काली से प्रेम करने का साहस रखते हैं, उनके लिये वे स्वयं को प्रत्यक्ष करती हैं — किसी दूरस्थ देवता के रूप में नहीं, अपितु सन्निकट, स्नेहमयी माता के रूप में।
उनकी उपस्थिति दैनन्दिन जीवन को साधना में रूपान्तरित कर देती है। प्रत्येक कार्य यज्ञ बन जाता है, प्रत्येक वचन मंत्र, और प्रत्येक प्रेम का कर्म उनके चरणों में एक अर्पण।

आधुनिक साधक — विशेषकर गृहस्थ — के लिये ‘तंत्र साधना’ ऐप इस कालातीत मार्ग में एक सुलभ प्रवेशद्वार का कार्य करता है।

अन्तर्मुखी यात्रा आरम्भ होने दें।
यह पथ प्रतीक्षा कर रहा है।


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