भगवान भैरव और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सृष्टिकर्त्री, माँ काली, के गहन संबंध के विषय में पढ़ें, तथा जानें कि उनकी साधना करने से भगवान भैरव कैसे जागृत होते हैं।
इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- भगवान भैरव — क्षेत्रपाल
- भगवान भैरव का स्वरुप
- काल एवं काली का संयोग
- श्री यंत्र द्वारा शिव-शक्ति
- ‘तंत्र साधना’ ऐप पर भगवान भैरव का आह्वान
तंत्र साधना की पवित्र परम्पराओं में, चेतना (शिव) एवं ऊर्जा (शक्ति) ब्रह्माण्ड की जीवंत परस्पर–क्रिया हैं।
उनका दिव्य संयोग ही समस्त सृष्टि, संहार एवं मोक्ष के केन्द्र में स्थित है।
तंत्र में भगवान भैरव (भगवान शिव का एक स्वरूप) शुद्ध चेतना हैं — अपरिवर्तनशील, शाश्वत तथा निराकार।
माँ काली (शक्ति का मूर्त रूप) वह गतिशील सृजन–शक्ति हैं, जिसके माध्यम से भगवान शिव स्वयं को अभिव्यक्त और अनुभूत करते हैं।
शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुम्।
न चेद्देवो देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि॥शिव तभी सृजन–समर्थ होते हैं जब वे शक्ति से संयुक्त हों।
शक्ति के बिना, वे भी स्पन्दित होने में भी समर्थ नहीं।— तंत्रसार, अभिनवगुप्त, श्लोक १

चित्र श्रेयांकन: शिव-भैरव एवं माँ काली चित्र
यह संयोग केवल अनुष्ठान या दर्शन तक सीमित नहीं; यह श्वास में स्पन्दित होता है, प्रत्येक जीव के हृदय में धड़कता है और जागृत आत्मा में प्रकाशमान होता है।
पवित्र ‘ह–स’ तंत्र, योग और वेदान्तीय रहस्यवाद में एक गहन तत्त्व है, जो श्वास का स्वाभाविक मंत्र है — एक स्वतः उत्पन्न ध्वनि-स्पन्दन, जो प्रत्येक जीव में शिव-शक्ति के सनातन संयोग का प्रतिबिम्ब है।
‘ह’ और ‘स’ बीजाक्षर हैं, जो क्रमशः श्वास-प्रश्वास के साथ सम्बन्ध रखते हैं। तांत्रिक ग्रन्थों और योग-शास्त्रों के अनुसार:
- श्वास–ग्रहण (प्राण) = “ह”
- श्वास–त्याग (अपान) = “स”
इनके संयोजन से ‘हंस’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ है ‘राजहंस’ — योग दर्शन में जो आध्यात्मिक विवेक और मुक्त चेतना की अवस्था का प्रतीक है।
जब इसे विपरीत क्रम में रखा जाता है तो यह ‘सोऽहम्’ बनता है, जिसका अर्थ है — ‘वह मैं हूँ’, जो अद्वैत की प्रत्यक्ष घोषणा है।
भगवान भैरव — क्षेत्रपाल
देवी और भगवान भैरव की शक्तियाँ एक रूप से प्रवाहित होती हैं — अनन्तकाल से अभिन्न और अविच्छिन्न। तंत्र–जगत् में एक प्रसिद्ध उक्ति है:
यत्र यत्र स्थिता देवी, तत्र तत्र स्थितो भैरवः।
अर्थात् — जहाँ-जहाँ देवी निवास करती हैं, वहाँ–वहाँ भैरव भी निवास करते हैं।
यह शिव–शक्ति, चेतना और ऊर्जा के अभिन्न संयोग को दर्शाता है।
यह संयोग केवल आध्यात्मिक–तत्त्वज्ञान तक सीमित नहीं, अपितु हमारे दैनिक जीवन में भी देखा जा सकता है।
जो भी देवी मन्दिर शास्त्रीय विधानानुसार प्रतिष्ठित होते हैं, उनमें मुख्य गर्भगृह अथवा समीपस्थ प्रांगण में भगवान भैरव का एक लघु-मन्दिर अवश्य होता है। वे वहाँ क्षेत्रपाल के रूप में उपस्थित रहते हैं।

चित्र श्रेयांकन: कसार देवी मंदिर

चित्र श्रेयांकन: कसार देवी शिव मंदिर
परम्परानुसार, भक्त देवी के गर्भगृह में प्रवेश करने से पूर्व भगवान भैरव को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। वे द्वारपाल के रूप में स्थित होकर यह सुनिश्चित करते हैं कि केवल वे ही आगे बढ़ें, जो विनम्र हों, आत्म–शुद्धि की प्रक्रिया से गुजरे हों और अन्तर्मन से साम्यस्थ हों, ताकि वे पवित्र क्षेत्र में प्रवेश कर सकें।
भगवान भैरव की शरण लिए बिना, कोई शारीरिक रूप से मन्दिर में प्रवेश तो कर सकता है, किन्तु आध्यात्मिक रूप से देवी–तत्त्व के गर्भगृह से बाहर ही रहता है।
इस प्रकार, साधक पहले भगवान भैरव की स्थिरता और मौन के साथ सामंजस्य स्थापित करता है, जो शक्ति के तीव्र अनुभव को धारित कर सके। केवल जब चेतना (भैरव) उपस्थित हो, तभी ऊर्जा (शक्ति) का यथोचित संचरण सम्भव होता है।
भगवान भैरव का स्वरुप
भगवान भैरव, भगवान शिव के एक उग्र और विस्मयकारी स्वरूप के रूप में प्रकट होते हैं। उनका वर्ण घने वर्षा-मेघों के समान गहरा दीप्तिमान है, नेत्र दिव्य क्रोध और ज्ञान की ज्वाला से प्रज्वलित हैं। उनकी जटाएँ अग्निमय प्रभामण्डल-सी घूम रही हैं, जिनपर मुंडमाला का मुकुट शोभित है, जो अहंकार और काल के विनाश का प्रतीक है।
अपनी ४ से ८ भुजाओं में वे त्रिशूल, डमरु, कपाल–पात्र और खड्ग धारण करते हैं, जो हिंसा के नहीं, अपितु मुक्ति के आयुध हैं। उनका तृतीय नेत्र पूर्णतया उद्घाटित है, जो अज्ञान को भस्म कर देता है, जबकि उनके अंगों पर लिपटे हुए सर्प, असीमित कुण्डलिनी शक्ति का प्रकाश फैलाते हैं।
वे एक काले श्वान पर आरूढ़ हैं, जो उनके निष्ठावान रक्षक तथा धर्म और निर्भीकता का प्रतीक हैं। उनके चारों ओर श्मशान की निस्तब्धता गूँजती है — वह क्षेत्र जो जन्म और मृत्यु से परे है, जहाँ वे अनित्यता के मध्य नृत्य करते हुए साधक को निर्भय होकर सत्य का सामना करने का आमंत्रण करते हैं।

चित्र श्रेयांकन: काल भैरव मूर्ति
रुद्रयामल तंत्र और अन्य शैव ग्रन्थों के अनुसार —
- ‘भ’ आता है भरण (पालन) से,
- ‘र’ आता है रवण (संहार) से, और
- ‘व’आता है वमन (प्रसारण अथवा सृजन) से।
अतः भगवान भैरव वही हैं जो सृजन, पालन और संहार करते हैं — अस्तित्व के सम्पूर्ण चक्र को धारित करने वाला दिव्य स्वरूप।
काल एवं काली का संयोग
यह उग्र चित्रण सहज ही उनकी स्त्री-शक्ति, उग्रस्वरूपिणी माँ काली की स्मृति जगा सकता है।
यदि भगवान भैरव वह स्थिर, अडिग चेतना हैं जो माया को भस्म कर देती है, तो माँ काली वह गतिशील, सर्वग्रासी शक्ति हैं जो मिथ्या अहम् का संहार कर आत्मा को सत्य में जन्म देती हैं।
देवी माहात्म्य के आठवें अध्याय में, माँ दुर्गा के ललाट से माँ काली का प्राकट्य रक्ताबीज से युद्ध करने हेतु होता है — वह असुर जिसका रक्त भूमि को स्पर्श करते ही असंख्य प्रतिरूप उत्पन्न करता था।
माँ काली ने अपने सर्वाधिक उग्र स्वरूप में अवतार लिया — शून्य के समान गहन वर्ण, मुक्त केश, प्रज्वलित नेत्र, लोल जिह्वा, और मुण्डमालाओं से अलंकृत देह। वे रणभूमि में अपनी उन्मुक्त, अजेय ऊर्जा के साथ उतरीं और असुरों का संहार प्रचण्ड बल से प्रारम्भ किया।
माँ काली ने रक्ताबीज का रक्त भूमि पर गिरने से पूर्व ही पी लिया। अन्ततः उन्होंने उसका और उसकी सेना का वध कर दिया।
किन्तु इस विजय के पश्चात भी, उनका विनाश–नृत्य अनवरत चलता रहा। उनका उन्माद तीव्रतर हुआ, जो केवल असुरों के लिये ही नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि–सन्तुलन के लिये भी संकट बन गया।
देवताओं को सर्वनाश का भय हुआ, क्योंकि उनका संहार अब असीम और निरपेक्ष हो चला था। वे भगवान शिव की शरण में गये।
उनकी उग्रता को रोकने हेतु, भगवान शिव रणभूमि में मृतदेहों के बीच लेट गये। माँ काली, अपने उन्मत्त परमानन्द में, उनके वक्ष पर चढ़ गयीं, और उसी क्षण उन्हें बोध हुआ। उन्होंने अपने आराध्य, अपने अस्तित्व के आधार को अपने पादतल में देखा।
उनकी जिह्वा बाहर आयी — न कि केवल लज्जा से, जैसा शाब्दिक अर्थ प्रचलित है, बल्कि अचानक हुए आत्मबोध और परातीत साक्षात्कार के प्रतीक रूप में।
उनका नृत्य थम गया। स्थिरता लौट आयी। ब्रह्माण्ड ने पुनः श्वास लिया।

चित्र श्रेयांकन: माँ काली चित्रकृति
जब माँ काली का चरण शिव के हृदय को स्पर्श करता है, केवल तभी सृष्टि का नृत्य पुनः आरम्भ होता है।
यह भावप्रवण उक्ति शक्ति संगम तंत्र (काली खण्ड ४.७) में मिलती है, जो गहन तांत्रिक ज्ञान को प्रकट करती है।
माँ काली का चरण उग्र शक्ति का प्रतीक है — वह असीम ऊर्जा जो सृष्टि और संहार दोनों को गति देती है।
भगवान शिव का हृदय शुद्ध, विश्रान्त चेतना एवं दिव्य साक्षी अथवा साक्षीभाव का आसन है, और चरण-स्पर्श उस मिलन के क्षण का द्योतक है, जब ऊर्जा का साक्षात्कार चेतना से होता है।
यह द्वैतों के संयोग को चिह्नित करता है।
श्री यंत्र द्वारा शिव-शक्ति
यह दिव्य संयोग तंत्र साधना के अन्य पक्षों में भी दृष्टिगोचर होता है, जैसे यंत्रों में। विश्रुत श्री यंत्र तंत्र और सनातन धर्म के सबसे गहन एवं दृष्टिगत रूप से जटिल प्रतीकों में से एक है। यह केवल एक आरेख नहीं — यह एक जीवित मण्डल, आध्यात्मिक साधन-विज्ञान, और शिव-शक्ति के दिव्य संयोग की द्रष्टव्य अभिव्यक्ति है।
यह पवित्र ज्यामितीय विन्यास निम्नलिखित से निर्मित है —
- ९ परस्पर जुड़ी हुई त्रिकोणाकार रेखाएँ —
५ अधोमुख त्रिकोण (शक्ति/स्त्री, ऊर्जा के प्रतीक)
४ ऊर्ध्वमुख त्रिकोण (शिव/पुरुष, चेतना के प्रतीक)
- ये मिलकर ४३ सूक्ष्म त्रिकोणों का एक जटिल विन्यास बनाते हैं, जिनमें से प्रत्येक एक दिव्य शक्ति-केन्द्र है।
- ठीक केन्द्र में बिन्दु स्थित है — वही आदि-बिन्दु, वह एकत्व, जिससे समस्त द्वैत उत्पन्न होता है और जिसमें अन्ततः विलीन हो जाता है।

चित्र श्रेयांकन: श्री चक्र यंत्र
भगवान भैरव और माँ काली का संयोग केवल कोई प्राचीन कथा नहीं — यह प्रत्येक जीव के भीतर, प्रत्येक श्वास में और प्रत्येक जागृत क्षण में घटित हो रहा है।
तंत्र का सार उस सम्बन्ध को अनुभव करना और उसे जीवन में उतारना है।
‘तंत्र साधना’ ऐप पर भगवान भैरव का आह्वान
‘तंत्र साधना’ ऐप वास्तविक परम्परा में निहित मार्गदर्शित मंत्रों, यज्ञों और साधनाओं के माध्यम से आपको इस पथ का सरल अन्वेषण कराता है। यह मानो आपके हाथ में एक लघु-मन्दिर हो, जो अभ्यास को प्रत्यक्ष अनुभूति में रूपान्तरित करता है।
क्योंकि तंत्र केवल अध्ययन की वस्तु नहीं, बल्कि एक जागृत अनुभवव है।
जब आप ‘तंत्र साधना’ ऐप के साथ अपनी यात्रा प्रारम्भ करते हैं, तब आप दशमहाविद्याओं, अर्थात विद्या की १० महान देवियों की ऊर्जाओं को जागृत करते हैं, माँ काली से आरम्भ करके। वे आदिशक्ति हैं — माया का नाश करने वाली, और अतीन्द्रिय बोध का प्रथम द्वार।
माँ काली का आह्वान करते ही भगवान भैरव का आविर्भाव भी होता है — उनके शाश्वत सहचर, वह स्थिरता जो उनकी असीम ऊर्जा को धारित और नियंत्रित करती है।
शक्ति का आह्वान कर शिव को जागृत करना ही है भैरव तंत्र का परम पवित्र रूप।
ऐप के प्रत्येक मंत्र, यंत्र और मार्गदर्शित उपासना का विन्यास इस दिव्य संयोग से आपको साम्यस्थ करने के लिये किया गया है। सुनियोजित साधनाओं के माध्यम से, आप माँ काली की उग्र कृपा से माँ तारा की रक्षात्मक प्रज्ञा, माँ त्रिपुर सुंदरी के तेजस्वी सौंदर्य, और माँ भुवनेश्वरी की विशालता की ओर बढ़ते हैं। प्रत्येक देवी दिव्य स्त्री-तत्त्व का एक विशिष्ट पक्ष धारण करती हैं।
जैसे–जैसे आप प्रत्येक देवी का आह्वान करते हैं, भगवान भैरव की उपस्थिति अधिक निकट और एकीकृत होती जाती है, जिससे आपकी जागृत ऊर्जा बिखरती नहीं, बल्कि स्थिर होकर चेतना में स्फटिकवत दृढ़ हो जाती है। यह ऐप इस पवित्र यात्रा में आपकी सहचरी बन जाती है।
अपने भीतर की दिव्यता को जागृत करें; प्रत्येक मंत्र के साथ, तंत्र के प्राचीन पथ को आपके भीतर से फूलने दें।
संदर्भ: sanskrittrikashaivism, archive.org, wikipedia.org, researchgate.net, devimahatmya, shwetathanki.files