पढ़ें और जानें तंत्र साधना का सार — इसका वास्तविक अर्थ क्या है, इसके चारों ओर प्रचलित सामान्य मिथक, तथा इस प्राचीन आध्यात्मिक मार्ग के पीछे छिपा गहन सत्य।
इस लेख में आप पढ़ेंगे:
- तंत्र का उद्गम
- तंत्र की उत्क्रांति
- वास्तविक तंत्र क्या है?
- दशमहाविद्याओं का मार्ग
- तंत्र साधना के पथ पर कैसे चलें?
जब आप ‘तंत्र’ शब्द सुनते हैं, तो सबसे पहली छवि क्या मन में आती है?
यदि वह श्मशान है — धूप के धुएँ, खोपड़ियों और वूडू गुड़ियों से भरा हुआ — तो आप अकेले नहीं हैं।
शताब्दियों से तंत्र ध्यान को रहस्य, गोपनीयता और भ्रांतियों के आवरण में ढँका गया है। अनेक लोग इसे काले जादू से जोड़ते हैं।
किन्तु अपने वास्तविक स्वरूप में तंत्र अथवा तंत्र साधना (तंत्र की आध्यात्मिक साधना) न तो अस्पष्ट है, न ही भयावह। यह आत्मबोध की एक अत्यन्त गहन और पवित्र मार्ग है — उतना ही प्राचीन, निर्मल और दिव्य, जितना सनातन धर्म की कोई अन्य आध्यात्मिक परम्परा।
यह लेख उसी भ्रम को शांतिपूर्वक दूर करने और तंत्र के वास्तविक मूल, उद्देश्य, तथा श्रद्धापूर्वक एवं शुद्ध रीति से अभ्यास किए जाने पर साधक में होने वाले रूपान्तरण का परिचय देने का प्रयास है।
तंत्र का उद्गम
तंत्र वैदिक युग से भी प्राचीन है। इसका प्रथम प्राकट्य रुद्र समुदायों द्वारा हुआ, जो भगवान शिव के उपासक थे।
इन शिक्षाओं का प्रारम्भिक रूप से मौखिक रूप में संप्रेषण हुआ, और बाद में इन्हें आगम नामक शास्त्रों में संहिताबद्ध किया गया — जो देवी और भगवान शिव के मध्य प्रश्नोत्तर के स्वरूप में रचित हैं।
माता प्रश्न करती हैं, और महादेव उत्तर देते हैं।
उस समय केवल तीन वेद ही प्रचलित थे — ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद।
प्रारम्भिक तंत्र, जिसमें विविध विधियाँ, तत्त्वचिंतन और साधनाएँ समाहित थीं, वैदिक संहिता के औपचारिक ढाँचे से पृथक ही रहा।
यह स्थिति तब परिवर्तित हुई जब महान ऋषि वेदव्यास — जो महर्षि पराशर के पुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक वशिष्ठ के पौत्र थे — ने इन शिक्षाओं का संकलन किया और अपने राजनैतिक प्रभाव के माध्यम से उन्हें उस वेद में स्थान दिलाया, जिसे आज हम अथर्ववेद के रूप में जानते हैं — इस प्रकार तंत्र साधना को वैदिक परम्परा में औपचारिक रूप से प्रतिष्ठित किया गया।
तंत्र की उत्क्रांति
तंत्र को परम्परागत रूप से ५ मार्गों में विभाजित किया गया है:
➡️ दक्षिणाचार (दक्षिण मार्ग),
⬅️ वामाचार (वाम मार्ग),
🔄 मिश्राचार (दक्षिण व वाम मार्गों का संयोग),
🌸 कौलाचार (जो ज्ञान कुल परम्परा में ही सीमित रखा जाता था),
🪷 समयाचार (आन्तरिक उपासना),
साथ ही एक छठा मार्ग भी है — दिव्याचार, अर्थात दिव्य आचरण का मार्ग।
इस पर नीचे विस्तार से चर्चा की जाएगी।
कालान्तर में तंत्र का ज्ञान फैलने लगा। लगभग १,५०० वर्ष पूर्व, बौद्ध भिक्षु इन शिक्षाओं को तिब्बत ले गए, जहाँ यह तारा नामक देवी की उपासना करने वाली स्थानीय बोन परम्पराओं से समाहित हो गया।
जब इन परम्पराओं के तत्त्व भारत में पुनः लौटे — विशेषतः तिब्बत से सटे क्षेत्रों में — तब तंत्र साधना के नवीन स्वरूप विकसित हुए।
श्मशान भूमि में की जाने वाली साधनाएँ, प्रतीकात्मक अनुष्ठान, तथा वामाचार के रहस्यमय पथ ने जनसामान्य की जिज्ञासा (और आलोचना) को आकर्षित किया।
शक्ति और समृद्धि की त्वरित प्राप्ति चाहने वाले अनेक लोग इन पवित्र साधनाओं को प्रायः टोन-टोटकों या अंधविश्वास के रूप में भ्रमित करने लगे।
पश्चिम में अनुचित चित्रण
१९वीं शताब्दी में ब्रिटिश न्यायाधीश और प्राच्यविद् सर जॉन वुडरॉफ (जिन्होंने ‘आर्थर एवलॉन’ के नाम से लेखन किया) ने 'द सर्पंट पावर' तथा 'शक्ति एंड शाक्त' जैसे ग्रन्थों के माध्यम से तंत्र के मूल, निर्मल स्वरूप को पश्चिमी जगत के समक्ष पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास किया। उन्होंने तंत्र की पवित्रता और रूपान्तरणकारी शक्ति पर विशेष बल दिया।

चित्र श्रेयांकन: 'शक्ति एंड शाक्त' पुस्तक
किन्तु २०वीं शताब्दी के आरम्भ तक पश्चिम में तंत्र का विकृत रूप सामने आने लगा। वामाचार के केवल बाह्य “काम” तत्त्वों से आकर्षित होकर, वहाँ तंत्र के आध्यात्मिक मूल — मंत्र जप, आह्वान, और दिव्यता — को भुला दिया गया।
जो पावन था, वह केवल इन्द्रिय-आकर्षण में परिवर्तित हो गया, और तंत्र का मूल स्वरूप भ्रम, भ्रांति एवं व्यवसायिकता के कारण ओझल हो गया।
वास्तविक तंत्र क्या है?
वास्तविक तंत्र एक आध्यात्मिक विज्ञान है — परमात्मा से एकत्व प्राप्त करने का का एक पवित्र मार्ग।
जिस प्रकार कोई मंत्र ईश्वर की ध्वनि-तरंग का प्रतिनिधित्व करता है, उसी प्रकार तंत्र उस ईश्वर के अनुभवात्मक पक्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
‘तंत्र’ शब्द ‘तन्’ (इन्द्रिय/मानसिक अनुभूति) और ‘त्र’ (विस्तार/रक्षण) से उत्पन्न हुआ है।
इस प्रकार, तंत्र का अर्थ है — शरीर के माध्यम से चेतना का विस्तार करना; भोग हेतु नहीं, बल्कि अतिक्रमण के लिए।
भक्ति के मार्ग में साधक ईश्वर की सेवा समर्पण द्वारा करता है, जबकि तंत्र साधना का लक्ष्य है — उपास्य के साथ एकत्व प्राप्त करना, इसी जीवन में।
इसके लिए साधक को पहले अपने मन की सीमाओं को पार करना होता है।
जो अनेक अनुष्ठान उग्र प्रतीत होते हैं — जैसे कि श्मशान में ध्यान — उनका उद्देश्य भय, आसक्ति और अहंकार को भस्म करना होता है, ताकि समस्त वस्तुओं की अनित्यता प्रकट हो सके और साधक भीतर से वैराग्य की ओर अग्रसर हो।
तंत्र का प्रारम्भिक रूप ५ मुख्य परम्पराओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित था:
🏔️ शैव तंत्र (भगवान शिव की उपासना)
🌹 शाक्त तंत्र (जगन्माता की उपासना)
🌟 वैष्णव तंत्र (भगवान विष्णु की उपासना)
🐘 गणपत्य तंत्र (भगवान गणेश की उपासना)
☀️ सौर तंत्र (भगवान सूर्य की उपासना)
शाक्त परम्परा में आदिशक्ति अथवा देवी को ही परम तत्त्व माना गया है। इस मार्ग में, देवी के आह्वान और उपासना के माध्यम से मुक्ति प्राप्त की जाती है।
दशमहाविद्याओं का मार्ग
शाक्त तंत्र के पथ पर चलने का एक अत्यन्त शक्तिशाली तथा सौम्य मार्ग है — माँ आदिशक्ति की १० रूपों, अर्थात् दशमहाविद्याओं की उपासना।

चित्र श्रेयांकन: दशमहाविद्याएँ
परन्तु इन महाविद्याओं के पवित्र क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व, तंत्र साधना का एक मूल तत्त्व समझना आवश्यक है — भाव ही सर्वस्व है।
इस पथ पर चलने की जिस भावना की अपेक्षा की जाती है, उसे दिव्याचार कहा जाता है — जहाँ ‘दिव्य’ का अर्थ है परम-पावन, और ‘आचार’ (या आचरण) का अर्थ है आन्तरिक जीवनवृत्ति।
यह तंत्र साधना में पथप्रदर्शक वह पावन अंत:भाव है, जो बाह्य नियमों से परे, भक्ति, समर्पण, और आन्तरिक शुद्धता से उत्पन्न होता है। यही वह उच्चतम उपासना है जो प्रत्येक अनुष्ठान को देवीमाता के साथ जीवंत सम्पर्क बना देता है।
बिना दिव्याचार के साधना केवल एक रिक्त क्रिया है; और उसके साथ — प्रत्येक मंत्र, प्रत्येक आहुति, माता की कृपा का द्वार बन जाता है।
प्रत्येक महाविद्या, देवीमाता के एक पक्ष की अभिव्यक्ति हैं, जो साधक की यात्रा के विभिन्न चरणों का प्रतिनिधित्व करती हैं — जैसे अहंकार का विनाश (माँ काली) से लेकर करुणा-स्निग्ध कृपा (माँ कमलात्मिका) तक।
इनकी उपासना कभी भी सामान्य या निरपेक्ष रूप से नहीं की जाती; वे सदा माँ के रूप में, श्रद्धा और आदर से आह्वान की जाती हैं।
यहाँ तक कि वामाचार के तीव्रतम अनुष्ठानों में भी दिव्याचार का भाव अन्तर्निहित होता है।
इस पथ पर चलना केवल अनुष्ठान करना नहीं है; यह तो सच्चे हृदय से देवीमाता को पुकारना है — और उसी पुकार के माध्यम से उन्हें अपने जीवन में आमंत्रित करना।
तंत्र के विषय में सबसे सामान्य भ्रांति यह है कि यह खतरनाक है या इसमें हानिकर प्रयोग (षटकर्म) होते हैं। यद्यपि ऐसे कर्म तंत्र में विद्यमान हैं, परन्तु उनका दुरुपयोग सरल नहीं है।
जो दुरुपयोग करता है, वह केवल अपने ही कर्मफल को आमंत्रित करता है — और देवीमाता सदा उसका लेखा रखती हैं।
तंत्र साधना के पथ पर कैसे चलें?
यदि यह प्राचीन और शक्तिशाली विज्ञान आपको भीतर से स्पर्श करता है — यदि आपकी अंतर्यात्रा की ज्वाला प्रज्वलित हो चुकी है — तो स्वयं इस पथ पर आगे बढ़ें।
माँ का आह्वान करें। उन्हें अनुभूत करें। उन्हें अपने जीवन को रूपांतरित करने दें।
तंत्र साधना ऐप के माध्यम से इस रहस्यमय तंत्र-जगत में प्रवेश करें — यह एक अत्यन्त गहन माध्यम है, जिसे हिमालयीय सिद्ध ओम स्वामी द्वारा उन निष्ठावान साधकों के लिए रचा गया है, जो दस महाविद्याओं के तांत्रिक पथ पर चलना चाहते हैं।
यह आपको देवीमाता की ओर क्रमशः पग-पग ले चलता है।
कोई शॉर्टकट नहीं। कोई मूल्य नहीं। केवल वेदों का पथ — अब आपके लिए उद्घाटित।
भक्ति में स्थिर, रूपान्तरण के लिए रचित, और सनातन धर्म को समर्पित एक ऐतिहासिक यज्ञ — तंत्र साधना एक क्रान्ति है।
यह आपके जीवन को बदल देगा। जानिए कैसे।
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