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पढ़ें और जानें तंत्र साधना का सार — इसका वास्तविक अर्थ, इसके सम्बन्ध में फैली सामान्य भ्रान्तियाँ, तथा इस प्राचीन आध्यात्मिक मार्ग के पीछे का गहन सत्य।

इस लेख में आप पढ़ेंगे:

तंत्र साधना क्या है?

तंत्र साधना सम्भवतः सर्वाधिक भ्रान्तिपूर्ण रूप से समझे जाने वाले गुह्य विद्याओं में से एक है।

आइए पहले ‘तंत्र साधना’ इस पद को समझने का प्रयास करें।

‘तंत्र’ शब्द की उत्पत्ति ‘तन’ (अर्थात् विस्तार करना) तथा ‘त्र’ (अर्थात् साधन) धातुओं से हुई है। अतः तंत्र का तात्पर्य है विस्तार अथवा मोक्ष हेतु एक साधन।

‘त्र’ धातु ‘त्रायते’ से भी निकला है, जिसका अर्थ है उद्धार अथवा रक्षा करना।

इस प्रकार, तंत्र का मार्ग आन्तरिक चेतना का विस्तार करता है, और मनुष्यों को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक बन्धनों से मुक्त करता है अथवा उनकी रक्षा करता है।

साधना’ शब्द का अर्थ है, किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु नियमबद्ध आध्यात्मिक अभ्यास।

इस प्रकार, ‘तंत्र साधना’ का अर्थ हुआ, ऐसा अभ्यास-पद्धति-पुंज जो मंत्र, यंत्र एवं अन्य योग-संप्रदायिक विधियों के माध्यम से आत्मबोध अथवा मोक्ष की प्राप्ति हेतु निर्मित हो।

प्रमुख तांत्रिक ग्रन्थों, जैसे कुलार्णव तंत्र, रुद्रयामल तंत्र तथा विज्ञानभैरव तंत्र, के अनुसार तंत्र का परम उद्देश्य है स्व के भीतर शिव (दैवी पौरुष तत्त्व, अर्थात् सौर ऊर्जा नाड़ी) तथा शक्ति (दैवी स्त्री तत्त्व, अर्थात् चन्द्र ऊर्जा नाड़ी) के ऐक्य का अनुभव करना।

चित्र विवरण: पद्मासन में स्थित एक पुरुष का चित्रात्मक आरेख, जिसमें मेरुदंड के मूल से शिरःस्थल तक जाने वाली सुषुम्ना नाड़ी की सीधी, ऊर्ध्वगामी धारा के चारों ओर इड़ा और पिंगला नाड़ियों की द्वि-वलयी गति दर्शायी गई है। सूर्य एवं चन्द्र के प्रतीक चिह्न इन द्वि-नाड़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

पिंगला नाड़ी सौर ऊर्जा-प्रवाहिनी को दर्शाती है, तथा इड़ा नाड़ी चन्द्र ऊर्जा-प्रवाहिनी को।

शिव-शक्ति का ऐक्य ही सुषुम्ना नाड़ी की उत्पत्ति करता है, जो मोक्ष का केन्द्रीय ऊर्जा-पथ है। चित्र श्रेयांकन

किन्तु वर्षों से ऐतिहासिक विकृति, सांस्कृतिक पक्षपात, आधुनिक माध्यमों द्वारा अतिरंजन तथा प्रामाणिक मार्गदर्शन की न्यूनता ने निष्ठावान साधकों के भीतर भ्रान्ति उत्पन्न कर दी है।

सामान्य मिथक

यहाँ तंत्र के सम्बन्ध में कुछ सर्वाधिक प्रचलित भ्रान्तियाँ एवं उनके वास्तविक तथ्य प्रस्तुत हैं —

मिथक 1

तंत्र केवल काम विषयक है।

सत्य

तंत्र के विशिष्ट मार्ग, जैसे वामाचार, शरीर को एक साधन रूप में प्रयोग करते हैं — सामाजिक संस्कारों तथा आत्मबोध की सीमाओं से ऊपर उठने हेतु।

ये साधनाएँ केवल अनुभवी साधकों द्वारा, गुरु के निर्देशन में सम्पादित की जाती हैं।

तंत्र के सम्बन्ध में सबसे बड़ी भ्रान्तियों में से एक यह है कि यह मुख्यतः काम से जुड़ा हुआ है। इस भ्रान्ति का मूल निम्न कारणों में निहित है:

→ तंत्र में प्रयुक्त विशिष्ट प्रतीकों की भ्रान्तिपूर्ण व्याख्या।

उदाहरण — योनि (गर्भ अथवा स्त्री जननेंद्रिय) तथा लिंग (पुरुष जननेंद्रिय) को प्रायः केवल यौन-प्रतीकों के रूप में समझ लिया जाता है, जबकि वास्तव में —

योनि सृष्टि की आदि-जननी ब्रह्मयोनि का प्रतीक है,

और लिंग शुद्ध चैतन्य का प्रतीक है, जो जागरण अथवा आत्मबोध का बीज है।

→ तंत्र की कुछ देवियों की उग्र अथवा नग्न मूर्तियों में निहित प्रतीकात्मकता का अज्ञान।

ऐसी मूर्तियाँ प्रायः सामान्य दृष्टि को चौंकाती या भ्रमित करती हैं। किन्तु तंत्र परम्परा में ये रूप गहन आध्यात्मिक अर्थों से युक्त होते हैं — साधना के लिये अत्यन्त प्रभावशाली प्रतीक एवं साधन।

उदाहरण — माँ छिन्नमस्ता का सर्वाधिक प्रचलित चित्रण एक उग्र तथा तेजस्विनी देवी के रूप में होता है। उसमें वे नग्न खड़ी होती हैं, स्वयं अपना मस्तक काट चुकी होती हैं, एक हाथ में कटा हुआ मस्तक तथा दूसरे में रक्तरंजित खड्ग धारण की हुई होती हैं। उनकी ग्रीवा से तीन रक्तधाराएँ प्रवाहित होती हैं — एक स्वयं उनके मुख में, शेष दो उनके दोनों ओर स्थित सहचरी शक्तियों — डाकिनी तथा वर्णिनी — के मुखों में प्रवाहित हो रही होती हैं। वे एक मैथुनरत युगल के ऊपर स्थित होती हैं, खड़ी अथवा नृत्य करती हुई।

माँ छिन्नमस्ता के नीचे जो युगल स्थित है, वे हैं कामदेव तथा उनकी पत्नी रति, अर्थात् इच्छा और वासना के देवता और देवी। इस मैथुनरत युगल के ऊपर स्थित होकर माँ छिन्नमस्ता काम, वासना तथा इच्छाशक्ति पर पूर्ण नियन्त्रण का प्रतीक बनती हैं। यह न तो दमन है, न ही आसक्ति, अपितु पूर्ण आत्मसंयम और तत्त्वबोध का प्रतीक है।

माँ का स्व-मस्तक छेदन आत्म-अहंकार के उच्छेदन का सूचक है, तथा उनकी ग्रीवा से प्रवाहित तीन रक्तधाराएँ शक्ति अथवा प्राण के त्रिविध प्रवाह की द्योतक हैं।

मिथक 

तंत्र काले जादू का पंथ है।

सत्य

तंत्र स्वयं कोई काला जादू नहीं है। तंत्र की साधनाएँ इस उद्देश्य से रचित हैं कि वे सभी सांस्कृतिक, धार्मिक अथवा मानसिक संस्कारों से मुक्ति प्रदान करें। कभी-कभी साधक अपनी आध्यात्मिक सिद्धियों का प्रयोग दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों हेतु भी कर लेते हैं — परन्तु ऐसा केवल तंत्र में ही नहीं, बल्कि वैदिक परम्परा में भी सम्भव है।

तांत्रिक अनुष्ठान प्रायः सामाजिक मर्यादाओं, नैतिक द्वैतों तथा धार्मिक वर्जनाओं को चुनौती देते हैं। परन्तु यह विद्रोह या चौंकाने के लिये नहीं किया जाता, अपितु इसके पीछे गहन आध्यात्मिक उद्देश्य होता है — ईश्वर के प्रति निर्भय, प्रत्यक्ष, अद्वैत बोध को जागृत करना।

उदाहरण — कपालिक साधना, जो दशमहाविद्याओं में से माँ काली को जागृत करने हेतु की जाती है। इस साधना में एक मानव खोपड़ी का प्रयोग अर्घ्य पात्र के रूप में किया जाता है। यद्यपि यह क्रिया बाह्य दृष्टि से वर्जित अथवा भयावह प्रतीत हो सकती है, परन्तु वास्तव में यह खोपड़ी जगन्माता के चरणों में हमारे अहंकार के पूर्ण समर्पण का प्रतीक होती है।

यह चित्र ‘तंत्र साधना’ ऐप में उपलब्ध वर्चुअल थ्री-डी कपाल पूजा का एक स्क्रीनशॉट है। इसमें एक मानवीय कपाल है, जिसके भीतर दीप प्रज्वलित है। कपाल भूमि पर बिछे लाल आसन पर स्थापित है। उसके चारों ओर अर्पित सामग्री रखी है — जैसे २ पात्रों में अन्न अथवा दालें, तथा पत्तियों या औषधियों के २ गुच्छे।

चित्र श्रेयांकन: ‘तंत्र साधना’ ऐप में कपाल पूजा

अधिकांश धार्मिक तथा नैतिक व्यवस्थाएँ संसार को दो भागों में बाँटती हैं — शुद्ध और अशुद्ध, पवित्र और अपवित्र, विरक्त और इन्द्रियासक्त, पुण्य और पाप।

तंत्र इस प्रकार के द्वैत को माया मानता है, जो मन को अहंकारमूलक पहचान में बाँधे रखता है।

छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” यह वाक्य तांत्रिक दर्शन में गूंजता है।

इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी दृश्य या अदृश्य है, स्थूल या सूक्ष्म है, लौकिक या आध्यात्मिक है — वह अंततः एक ही सत्य है, ब्रह्म। ब्रह्म ही अनन्त, नित्य और अपरिवर्तनीय तत्त्व है।

तंत्र के विषय में व्याप्त भ्रांतियों का एक कारण सांस्कृतिक अपव्याख्या भी रहा है।

ब्रिटिश शासन के काल में धर्मप्रचारकों और औपनिवेशिक लेखकों ने तंत्र को कलंकित किया।

उसे अशुभ, बुतपरस्त और अश्लील कहकर काले जादू, भूत-पूजा तथा अंधविश्वास से जोड़ दिया गया, प्रायः उसके तत्त्वज्ञान को बिना समझे।।

इस प्रकार की विकृत धारणाएँ आज भी पाठ्यपुस्तकों, मीडिया और जनमानस में गहराई से समाई हुई हैं।

मिथक 

तंत्र हानिकारक है।

सत्य

तंत्र की साधना स्वयं में कोई भी संकटकारी या अहितकर नहीं है।
किन्तु वह भौतिक वातावरण, जिसमें मूल तांत्रिकों द्वारा यह साधना की जाती थी, जैसे श्मशानभूमियाँ, निर्जन वन, गुफाएँ अथवा वीरान पर्वत, वे स्थान स्वाभाविक रूप से कुछ बाह्य संकटों से युक्त होते थे। इन स्थानों का चयन साधक को समस्त भय, विशेषतः मृत्यु के आदिभय से ऊपर उठाने के उद्देश्य से किया जाता था।

प्रारम्भिक तांत्रिक, गुप्त स्थानों में साधना करते थे, जहाँ उन्हें भौतिक संकटों का सामना करना पड़ता था — जंगली पशु, विषैले कीट और सर्प, भोजन और जल का अभाव, आश्रय की अनुपलब्धता, प्रतिकूल मौसम, तथा चोरी, आघात अथवा व्याधि से सुरक्षा का अभाव।

किन्तु स्वयं साधनाएँ हानिकारक नहीं थीं। यदि देखा जाए, तो प्रामाणिक तंत्र एक अत्यन्त सूक्ष्म, पवित्र एवं गहन रूपान्तरणकारी मार्ग है, जिसका उद्देश्य अहंकार, अज्ञान और संस्कारबद्ध चित्तवृत्तियों का नाश करना होता है।

मिथक 

तंत्र आत्मसाक्षात्कार का एक 'शार्ट कट' है तथा तत्काल फलित होता है।

सत्य

तंत्र एक तीव्र मार्ग है, जिसमें रूपांतरण तीव्र गति से हो सकता है। परन्तु यह कोई सरल उपाय नहीं है, और इसके फल पूर्णतः साधक की संकल्पशक्ति तथा मानसिक दृढ़ता पर निर्भर करते हैं। और निस्संदेह, दिव्य अनुग्रह पर भी।

तंत्र शक्तिशाली है, पर सरल नहीं। यह एक महान आन्तरिक अग्नि (तपस्या) और उत्तरदायित्व का मार्ग है। जैसे आत्मबोध के अन्य किसी भी मार्ग में होता है, वैसे ही तंत्र-साधना के पथ पर चलने वालों को भी तीव्र साधना के माध्यम से आत्मशुद्धि की आध्यात्मिक कसौटी से होकर गुजरना ही पड़ता है, जिससे वे एक आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ती बन सकें।

जैसा कहा गया है, "श्रेष्ठ वस्तुएँ समय लेती हैं।"

तंत्र-साधना के फलों के विषय में भी यही सत्य है।

किस क्षण कोई साधक अपनी साधना के परिणामों का अनुभव करेगा, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। यह अनेक अत्यन्त व्यक्तिगत एवं आध्यात्मिक कारणों पर निर्भर करता है। कोई निश्चित समयसीमा नहीं होती, क्योंकि तंत्र कोई यंत्रवत मार्ग नहीं है — यह एक जीवित मार्ग है, जो ब्रह्माण्डीय चैतन्य द्वारा संचालित होता है, जो साधक की तीव्रता, संकल्प की पवित्रता और उसकी आन्तरिक तैयारी पर उत्तर देता है।

तंत्र साधना का सत्य

हिमालय के सिद्ध ओम स्वामी की एक कथा तंत्र-साधना के सार को उजागर करती है —

गहन वन के भीतर, एक अनुभवी, शक्तिशाली तांत्रिक ने माँ काली की साधना हेतु एक विशेष स्थल निर्मित किया। वे एक शव पर विराजमान होकर, माँ के तांत्रिक मंत्र का जप करते, केवल एक दिव्य दर्शन की अभिलाषा में तन्मय थे।

एक सन्ध्या, जब उनका अनुष्ठान चरम पर था, तभी एक बाघ आया और उन्हें तत्काल मार डाला। उनकी वर्षों की प्रतीक्षा और साधना अधूरी ही रह गई।

उसी समय, एक लकड़हारा एक वृक्ष की शाखा पर रात्रि बिताने हेतु बैठा था और उसने यह समूचा दृश्य देखा। तांत्रिक की मृत्यु देखकर उसे न भय हुआ, न ही संकोच।

जो मंत्र उसने तांत्रिक के मुख से सुना था, उसे स्मरण कर, वह जिज्ञासावश शव के पास बैठ गया। उसने तांत्रिक की यज्ञाग्नि को पुनः प्रज्वलित किया और वही पवित्र तांत्रिक मंत्र जपने लगा।

पाँचवीं बार मंत्र का उच्चारण करते ही, माँ काली साक्षात प्रकट हुईं — भीषण रूप में, रात्रि सम श्यामवर्णा, मुण्डमालाधारिणी, तेजस्विनी और दिव्य।

माँ ने पूछा, “वरं ब्रूहि — क्या चाहते हो?”

लकड़हारा, अचंभित और स्तब्ध होकर बोला, “मैंने तो केवल ५ बार मंत्र जपा और मुझे आपका साक्षात्कार हो गया, परन्तु वह तांत्रिक, जो इतनी श्रद्धा से आपका जप कर रहा था, उसके सामने आप क्यों प्रकट न हुईं?”

माँ मंद मुस्कान के साथ बोलीं, “तेरे कर्म परिपक्व हो चुके थे। पूर्वजन्म में तू भी उस तांत्रिक के समान ही मृत्यु को प्राप्त हुआ था। तुझे मात्र पाँच मंत्र और जपने थे कि साधना पूर्ण होती। इस जन्म में तूने वही ५ मंत्र जप लिए — अतः मैं प्रकट हुई।

वह तांत्रिक अभी साधना के शेष पथ पर है। उसे अभी और यत्न करना होगा।”

यह कथा दर्शाती है कि तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्ति हेतु अनेक जन्म लग सकते हैं। अतः तंत्र कोई त्वरित उपाय नहीं है, न ही तात्कालिक परिणामों का वचन देता है।

तंत्र साधना, यदि यथार्थ रूप में समझी जाए, तो यह एक गहन रूपांतरण का मार्ग है, जिसमें प्रामाणिकता, धैर्य और आन्तरिक शक्ति की अनिवार्य आवश्यकता होती है।

यह मार्ग न तो अंधकारमय है, न ही भयावह। यह तो एक अनुशासित विज्ञान है — जागरण का विज्ञान, जो साधक को सीमाओं से मुक्त कर मुक्ति की ओर ले जाता है।

सही मार्गदर्शन और निष्कलंक भावना के साथ यह साधना केवल एक अभ्यास नहीं, अपितु एक अत्यन्त सार्थक जीवन-मार्ग बन जाती है।

'तंत्र साधना' ऐप इस यात्रा को सहज, संरचित और प्रामाणिक बनाकर, साधकों को सच्चे मार्गदर्शन, विश्वसनीय साधन-सामग्री, और व्यावहारिक उपकरणों द्वारा समर्थ बनाता है — ताकि वे इस पवित्र मार्ग पर स्थिर, जागरूक और आध्यात्मिक रूप से उन्नत रह सकें।

संदर्भ: youtubeholybooks.comwikipediahinduonline.coaghori.ityoutubearchive.org

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